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________________ ३१० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व यद्यपि प्रकृति-वर्णन के लिए महाकवि भवभूति की प्रसिद्धि है, किन्तु जब हम विवेच्य साहित्य का प्रकृति-वर्णन देखते हैं, तो लगता है कि इसका प्रकृति-वर्णन भवभूति के प्रकृति-वर्णन से कम नहीं है। समयसुन्दर की लगभग सभी काव्य-रचनाओं में प्रकृति का न्यूनाधिक रूप में मनोमुग्धकारी, सुकुमार एवं स्वाभाविक चित्रण हुआ है। कविवर 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के उपासक थे। अतः उनकी दृष्टि रमणीय और मधुर दृश्यों में भी गई है। उनकी अन्तः और बाह्य प्रकृति का सुन्दर समन्वय उनकी रचनाओं में दर्शनीय है। यथार्थता से मंडित प्राकृतिक वर्णनों का चमत्कार सरस हृदयों को बलात् अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। __ऋतु परिवर्तन के साथ प्रकृति के रूप वैभव में भी परिवर्तन आ जाता है। वसन्त ऋतु में प्रकृति का विशेष आवर्जक रूप प्रकट होता है। इसलिए वसंत का वर्णन प्रायः प्रत्येक कवि करता है। कवि समयसुन्दर ने भी वसन्त का वर्णन कई बार किया है, उदाहरणार्थ - एहवइ मास वसन्त आवियउ, भोगी पुरषां मनि भावियउ। रूड़ी परि फूली वणराइ, मइकइ परिमलं पुहवि न भाई॥ सखर घणुं मउर्या सहकार, मांजरि लागी महकइ सार। कोयलि बइठी टहुका करइ, साखा ऊपरि मधुरइ सरइ॥ छयल छबीला नर छैकाल, गायई वायई बाल गोपाल। चतुर माणस ते हाथे चंग, मेघनाइ वाजई मिरदंग॥ फुटरा गीत गायई फागना, रसिक तेह कहई रागना। ऊडई लाल गुलाल अबीर, चिहुँ दिसि भीजइ चरणा चीर ॥ अपि च तिण अवसर सोहामणो आयो वसंत सुरंगा खेलणा॥ रसिया खेले बाग में गाइ राग वसंत ॥ वउलसिरी जाइ जूइ कुंद अनै मचकुंद। चंपक पाडल मालती, फुल रहिया अरविंद। मरुउ दमणउ मोगरो, सब फूली वनराय। एक न फूली केतकी, पिउ बिन हरख न थाय॥ आंबा मर्या अति भला, मांजरि लागा सार। कोयल करे टहुकड़ा, चिहुँ दिस भमर मुंजार। जुगबाहु रमवा चल्यो, मयणरेहा लेइ साथ। बाग मांहि रमे रंग सुं, डफ बाजै निज हाथ ॥ १. सिंहलसुत चौपाई (१.५-८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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