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________________ समयसुन्दर की भाषा सर्वज्ञेन समादिष्टं सार्द्धद्वीपद्वये धुवम् । द्वात्रिंशताधिकं भाति शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ हत्यारोह शिरस्त्राणश्रेणिमालोक्य संगरे पतितो विह्वलो वादीत् शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ भुक्तधत्तूरपूरत्त्वाद् भ्रान्तदृष्टिरितस्ततः । अपश्चत्कोपि सर्वत्र शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ दर्पण श्रेणिमालोक्य सौधाभ्रंलिहतोरणे । स्माह सुप्तोत्थितः कोपि शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ नभः प्रकाशवद्भाति यथैकेन खरांशुना । तथा सखि कदापि स्यात् शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ यत्र-तत्र जलस्थाने दृश्यते जलचन्द्रमाः । तत्किं सखि संजातं शतचन्द्रनभस्तलम् ॥१ ग्रस्यते राहुणा नित्यमेक एकहि मत्प्रियः । सृष्टमासात्तदा श्रेष्ठं शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ हीनाधिककलाभेदाद्द्द्विविधो दृश्यते विधु: । वत्तीत सुभगं तत्के शतचन्द्रनभस्तलम् ॥ न पश्येत्पुण्यहीनो हि निधानं पुरतः स्थितम् । किमन्धः शतसूर्यं वा शतचन्द्रनभस्तलम् ॥२ 'श्री जिनसिंहसूरिपदोत्सव' काव्य एवं 'ऋषभ भक्तामर' पादपूर्ति - शैली में अपनी कुछ विशेषताएँ रखते हैं। प्रथम कृति में कवि ने कालिदास कृत् रघुवंश के तृतीय सर्ग को अपना रचना - आदर्श माना है। पादपूर्ति शैली में होने के कारण उन्होंने रघुवंश के तृतीय सर्ग के प्रत्येक पद्य के चतुर्थ चरण को अपने ' श्री जिनसिंहसूरि पदोत्सव' काव्य का चौथा चरण बनाया है; किन्तु विशेषता यह है कि प्रत्येक पद्य की तीन पंक्तियाँ इस प्रकार रची गयी हैं कि उनके भाव का चतुर्थ पंक्ति के भाव से संबंध हो गया है। यद्यपि रघुवंश और 'श्री जिनसिंहसूरि पदोत्सव' काव्य- -इन दोनों काव्यों के कथानक भिन्न हैं, तथापि समयसुन्दर के कालिदास के आदर्श की प्रत्येक पद्य में समस्यापूर्ति की है । और इस प्रकार पादपूर्ति-शैली में रघुवंश के तृतीय सर्ग के सम्पूर्ण कथानक को सफलतापूर्वक निभाया है। यही बात 'ऋषभ भक्तामर स्तोत्र' के बारे में भी जाननी चाहिये । इस कृति में आचार्य मानतुंग रचित भक्तामरस्तोत्र की पादपूर्ति है। दोनों कृतियों की शैली में माधुर्य है। निम्नलिखित अवलोकनीय है - १. इदं द्वात्रिंशंदांयुक्त २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ४९७ (१-१६) Jain Education International ३०१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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