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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व त्रयांसी, तियासी।
सयां, सइ, सई, सउ, सै, सय, से, सो, चउरासी, चउरासीय, चौरासी।
शत। सित्यासियइ, सित्यासीयौ, सत्यासीया, सहस्री, सहस, हजार, सहस्र, सहस्त्र। सत्यासीयइ, सत्यासीयउ।
लाख, लख, लक्ष। अठ्यासीया।
कोडि, कोडी। नइयासी, नव्यासी, नव्यासी, नियासी, अक्षोहिणी। निवासी।
सागर। एकाj, इकाणु।
पूरव, पूरब। त्राणुं, तिराणुं।
असंख्य, असंख्यात्। चउराणुयइ, चउराणुं
अनंत, अनन्ता। पंचाणुत्तरे।
पा। छन्नू, छन्नु।
आधा, अध। सताणुया, सत्ताणु।
पौण, पौन, पउण। अट्ठाणुअइ, अट्ठाणुए।
अढ़ाई, अढ़ीय। निवाणूं, नवाणुं।
सवा।
साढ़ी (बारह), साढ़ा, सढ़। १.४ सिन्धी भाषा
सिन्धी भाषा की उत्पत्ति पैशाची प्राकृत के ब्राचड़ अपभ्रंश से मानी जाती है। सिन्धी भाषा सिन्ध देश में बोली जाती है। कविवर्य समयसुन्दर ने सिन्ध देश में दो-ढाई वर्ष तक विचरण किया था। इस दीर्घकाल में उन्हें सिन्धी का भी ज्ञान हो गया था। यद्यपि सिन्धी उनकी मातृभाषा नहीं थी, तथापि उनकी सिन्धी अशुद्ध नहीं थी। उन्होंने सिन्धी में रचनाएँ भी लिखीं। श्री आदिजिन स्तवनम्' और 'श्री नेमिजिनस्तवनम्' - ये दो रचनाएँ सिन्धी में रचित प्राप्त होती हैं। मृगावती-चरित्र चौपाई के तृतीय खण्ड की नवमी ढाल भी सिन्धी भाषा में प्रणीत है।
समयसुन्दर की सिन्धी में प्राचीन हिन्दी का आंशिक प्रभाव अवश्यमेव है। उनकी सिन्धी, मुलतानी सिन्धी है, जो सिन्धी और पंजाबी का मिश्रित रूप है। मईकुं भावंदा हे भइणा'१ आदि पंक्तियाँ मुलतान में प्रचलित सिन्धी भाषा को ही प्रदर्शित करती हैं। ऐसे अनेक शब्द हैं, जो ठेठ सिन्धी भाषा के ही हैं । घोट२ (पति), नेहुरे (स्नेह) आउ/
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री नेमिजिनस्तवनम् (१) २. वही, श्री नेमिजिन स्तवनम् (६) ३. वही, श्री नेमिजिन स्तवनम् (८)
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