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________________ २५६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६.६.२४ पर-प्रशंसा गीतम् प्रस्तुत गीत में आदर्श पुरुषों और उनके विशिष्ट गुणों का स्मरण करते हुए कवि ने उनकी स्तुति की है एवं उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है। गीत में ७ पद्य हैं। गीत का रचना-काल अनुपलब्ध है। ६.६.२५ सिद्धान्त-श्रद्धा सज्झाय कवि का मत है कि जिन की अनुपस्थिति में जिनवचन ही जिनवत् हैं। जिनवचन आगमों में निबद्ध हैं। कवि की दृष्टि में आगम प्रमाण हैं और 'पंचम आरे' के अन्त तक किसी न किसी रूप में इनका अस्तित्व बना रहेगा। गीत में ६ पद्य हैं । गीत का रचना-काल अज्ञात है। ६.६.२६ श्रावक मनोरथ गीतम् इस गीत में श्री पार्श्वनाथ प्रभु द्वारा प्ररूपित जिन-शासन का एवं श्रावक के धार्मिक मनोरथों का निदर्शन है। गीत ६ पद्यों में है। इसका रचना-काल अप्राप्य है। ६.६:२७ अन्त समये जीव-निर्जरा गीतम् प्रस्तुत रचना १० पद्यों में निबद्ध है। इसमें कवि ने जीव को आत्म-निर्जरा करने का उद्बोधन दिया है। कवि ने लिखा है कि मरणान्त-काल में सांसारिक मोह, माया. लोभादि का त्याग कर संलेखना-सहित अपनी निर्जरा कर लेनी चाहिये, क्योंकि धन, कुटुम्ब कोई भी साथ नहीं चलेगा और मनुष्य-भव पुनः प्राप्त होना दुर्लभ है। गीत के रचना-काल का कवि ने निर्देश नहीं दिया है। उपर्युक्त सभी उपदेशपरक रचनाएँ भाषा में रचित हैं। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित लघु रचनाएँ भी प्राप्त होती हैं - ६.६.२८ जीव-प्रतिबोध गीतम् ६.६.२९ जीव-प्रतिबोध गीतम् पद्य३ ६.६.३० जीव-प्रतिबोध गीतम् पद्य ३ ६.६.३१ जीव-नटावा गीतम् पद्य ४ ६.६.३२ वैराग्य-शिक्षा गीतम् ६.६.३३ घड़ी लाखिणी. गीतम् ६.६.३४ सूता जगावण गीतम् पद्य ४ ६.६.३५ प्रमाद-त्याग गीतम् । पद्य ५ ६.६.३६ प्रमाद-परित्याग गीतम् पद्य ५ ६.६.३७ माया-निवारण गीतम् पद्य ४ ६.६.३८ लोभ-निवारण गीतम् पद्य ३ ६.६.३९ पारकी होड़ निवारण गीतम् पद्य३ पद्य २ पद्य ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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