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________________ २४५ समयसुन्दर की रचनाएँ पर बल दिया है। ६.५.२.४ पाटण-मण्डण श्री जिनकुशलसूरि गीतम् कवि ने जिनकुशलसूरि को इस गीत में 'दादा' उपनाम से अभिसंज्ञित किया है। इसमें सुख, सम्पत्ति, धर्म एवं सिद्धि प्रदान करने के लिए 'दादा' से विनती की गई है। सम्पूर्ण गीत ६ गाथाओं में है। इसकी रचना कब हुई, इसका कवि ने निर्देश नहीं दिया है। ६.५.२.५ अहमदाबाद-मंडण श्री जिनकुशलसूरि गीतम् इसमें जिनकुशलसूरि को कल्पतरु का मूल-बीज बताया है। इनकी स्तुति करने वाला कल्पतरु के सदृश सर्वस्व प्राप्त करता है - यही प्रस्तुत गीत का प्रतिपाद्य विषय है। गीत में ७ गाथाएँ हैं। इसका रचना-काल अनुल्लेखित है। यह गीत भी 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में प्रकाशित है। ६.५.२.६ युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि गीतम् प्रस्तुत गीत के रचना-काल के संबंध में कवि ने मात्र यही उल्लेख किया है कि यह रचना 'लाहोर' नगर में हुए महोत्सव के पश्चात् रची गई। 'अष्टलक्षी' ग्रन्थ से वि० सं० १६४९ में कवि के लाहौर जाने का निर्देश मिलता है। यह रचना भी सम्भवतः उसी वर्ष रची गयी होगी। इस रचना में १९ चतुष्पद हैं। कवि ने रचना के अन्त में 'कलश' देकर रचना का उपसंहार भी किया है। इस गीत में युगप्रधान भट्टारक जिनचन्द्रसूरि द्वारा किये गये महत्त्वपूर्ण कार्यों का एवं उनकी प्रभावकता का सम्यक् चित्रण किया है, जिसका विवेचन हम कवि की 'गुरुपरम्परा' के अन्तर्गत कर आए हैं। ६.५.२.७ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूर्यष्टकम् यद्यपि प्रस्तुत रचना मात्र ८ चतुष्पदों में निबद्ध है, लेकिन यह रचना ऐतिहासिक है। इसमें कवि जिनचन्द्रसूरि की विस्तृत प्रतिभा का यथातथ्य निरूपण करते हुए सम्राट अकबर द्वारा उनको दिये गये आमन्त्रण, लाहौर नगर में उनका प्रवेशोत्सव एवं सम्मान, अकबर को मन्त्रमुग्ध बनाना, अमारि (अहिंसा) का फरमान प्राप्त करना, खम्भात की मछलियों को जीवनदान दिलाना, सुलतान सलेम तथा मन्त्री कर्मचन्द आदि की उनके प्रति भक्ति और जिनसिंहसूरि के पट्टाभिषेक इत्यादि का चित्रण किया गया है। रचना का रचना-काल अज्ञात है। ६.५.२.८ छः राग, छत्तीस रागिणी-नाम गर्भित श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतम् इस गीत के शीर्षक से ही प्रगट होता है कि इसमें ६ राग और ३६ रागिणी का नामोल्लेख किया गया है। ये नामोल्लेख जिनचन्द्रसूरि के गुण-कीर्तन के मध्य में किये गये हैं। गीत में कवि ने दोहरी प्रणाली अपनाई है। एक तो राग-रागिनियों का नामोल्लेख करना और दूसरे में गुरु की प्रतिभा पर प्रकाश डालना। कवि को दोनों में सफलता प्राप्त हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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