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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २४१ प्रकट किया तो उसे भारी पश्चाताप हुआ। नर्मदा ने उसे भी प्रतिबोध दिया । अन्त में अपनी साधना के द्वारा नर्मदा ने स्वर्ग प्राप्त किया । प्रस्तुत गीत में ८ पद्य हैं। इसका रचना - काल एवं रचना-स्थल अज्ञात हैं 1 ६.४.३ चेलना सती गीतम् यह गीत ७ गाथाओं में निबद्ध है। इसका रचना - काल अनुल्लिखित है । गीत की विषय-वस्तु इस प्रकार है मगध- नरेश श्रेणिक रानी चेलना के साथ भगवान् महावीर को वन्दन करके जब लौट रहे थे, तो राह चलती हुई चेलना ने एक कायोत्सर्गस्थ मुनि को देखा । भयंकर सर्दी में भी वे मुनि निर्वस्त्र व निश्चल खड़े थे । रात्रि में चेलना का एक हाथ खुला रह गया, जिससे वह सुन्न हो गया। उसे मुनि स्मृति जागी और वह बोल बैठी - वे क्या करते होंगे ? राजा ने इसे सुना और विचार किया - इसके मन में निश्चय ही किसी पर-पुरुष के प्रति प्रेम है। उसने अगले दिन अभयकुमार को उसका महल जलाने को आदेश दे दिया। अभय ने राजा को भ्रम हुआ समझकर खाली महल जलवा दिया। जब महावीर ने श्रेणिक का भ्रम दूर किया, तो उसे पश्चाताप हुआ और उसने अभयकुमार को निकल जाने की आज्ञा दी। अभय प्रव्रजित हो गया, उधर चेलना को जीवित देख राजा प्रसन्न हुआ। ६. ४.४ श्री दवदन्ती सती गीतम् इस गीत में नल द्वारा द्यूत-क्रीड़ा में राज्य हार जाने से लेकर दमयन्ती के पितृगृह पहुँचने तक की घटना संक्षेप में वर्णित है । इन घटनाओं का विस्तृत विवरण 'नलदवदन्ती - रास' की विषय-वस्तु का वर्णन करते हुए हम लिख चुके हैं । अतः यहाँ उसका वर्णन अपेक्षित नहीं है । गीत ६ गाथाओं में रचित है। इसका रचना - काल अज्ञात है । ६. ४.५ अंजनासुन्दरी गीतम् प्रस्तुत गीत में अंजनासुंदरी के हृदयद्रावक जीवन-वृत्त का संक्षेप में चित्रण किया गया है। राजा पवनंजय की पत्नी का नाम अंजना था, लेकिन पूर्व कर्मों के संयोग वश पवनंजय उसके प्रति अन्यमनस्क रहे; यहाँ तक कि उससे कोई बातचीत भी नहीं की । एकदा पवनंजय युद्ध के लिए रवाना हुए। प्रथम पड़ाव में उन्होंने चकवे के विरह में झुलसती चकवी को देखा। उसके मन में अंजना का विचार आया, जो बारह वर्षों से विरहग्रस्त थी । राजा रात्रि में ही गुप्त रूप से अंजना के पास गये। अंजना ऋतु स्नाता थी, अतः गर्भ रहने पर भी कोई संदेह न करे, इसलिए पवनंजय के अपनी नामांकित मुद्रिका उसे दे दी थी; परन्तु उसकी सास ने अविश्वास करते हुए कलंक लगाकर उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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