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पद्य ५
पद्य ४
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समयसुन्दर की रचनाएँ
२३९ ६.३.४२ श्री बाहुबलि गीतम्
पद्य ४ ६.३.४३ श्री मेघकुमार गीतम् ६.३.४४ श्री रामचन्द्र गीतम्
पद्य५ ६.३.४५ श्री रामसीता गीतम् ६.३.४६ श्री शालिभद्र गीतम् ६.३.४७ श्री श्रेणिकराय गीतम्
पद्य ४ ६.४ सतियों से संबंधित गीत
सदाचारी, शीलवान् एवं पतिव्रता स्त्रियाँ सती कहलाती हैं । प्रचलित अर्थ में सती वह स्त्री है जो अपने पति के मरने पर उसके साथ ही जलकर अनुगमन करती थी। वस्तुतः यह प्रथा गर्हित थी। मुगलों के आक्रमणकाल में शीलसुरक्षा की कठिनाई के कारण ही इसे प्रोत्साहन मिला था। सम्राट अकबर ने भी इसे बन्द करना चाहा, परन्तु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई। किन्तु राजा राममोहनराय के प्रयासों के लार्ड विलियम बेंटिङ्क के शासन-काल (१८२९ ई०) में यह प्रथा भारत में बन्द कर दी गयी।
जैनधर्म में अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली या पतिव्रता आदर्श स्त्री सती मानी जाती है। सती स्त्रियाँ अपने सतीत्व के रक्षण के लिए अनेक प्रतिकूल स्थितियों का सामना करती हैं और कष्ट उठाकर भी अपने शीलव्रत को सुरक्षित रखती हैं। जैनसाहित्य में ऐसी सती स्त्रियों का प्रचुर वर्णन उपलब्ध होता है। उदाहरण रूप में -
१. आवश्यक नियुक्ति (गाथा १६९, ३४८, ५२०-२१, १०४८, १२८४, १३११
आदि) २. दशवैकालिक-नियुक्ति (१.७३-७६, २.८ आदि) ३. उत्तराध्ययन सूत्र (अध्ययन २२ आदि) ४. ज्ञातासूत्र (१६वाँ अध्ययन) ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुष-चरित्र (पर्व ७-८) ६. भरतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति आदि।
कविवर समयसुन्दर ने भी सतियों के चरित्र पर अनेक गीत निबद्ध किये हैं। उन गीतों से विदित होता है कि वे इन नारी-रत्नों के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा रखते थे। कवि समयसुन्दर के सतियों से संबंधित गीतों का सामान्य विवरण निम्नानुसार है - ६.४.१ श्री ऋषिदत्ता गीतम्
प्रस्तुत गीत में १७ कड़ियाँ हैं। इसकी विषयवस्तु निम्नांकित है -
राजा कनकरथ रुक्मिणी से विवाह करने के लिए रवाना हुआ। मार्ग में उसकी तापस-पुत्री ऋषिदत्ता से भेंट हुई। राजा उस पर मोहित हो गया। वह रुक्मिणी से विवाह करने के स्थान पर उससे विवाह करके लौट आया।
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