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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २३७ राजगृह में शालिभद्र नामक अपार समृद्धिशाली सेठ रहता था। एक बार एक रत्नकम्बल का व्यापारी अपनी रत्नकम्बलों को विक्रय करने हेतु राजगृह आया । राजा श्रेणिक उन रत्नकम्बलों को क्रय न कर सके, किन्तु माता भद्रा ने उन्हें क्रय कर शालिभद्र की पत्नियों को दे दिया। राजा श्रेणिक ने अपनी पत्नी के आग्रह पर दूसरे दिन एक रत्नकम्बल खरीदने हेतु व्यापारी की खोज करवाई। उससे ज्ञात हुआ कि वे सभी कम्बलें माता भद्रा क्रय कर चुकी हैं। यह जानकर श्रेणिक को माता भद्रा से मिलने की उत्कण्ठा हुई और वे उससे मिलने के लिए उसके घर आए। माता भद्रा ने पुत्र को कहलाया - पुत्र ! अपने नाथ घर आए हैं, अतः नीचे आओ और उन्हें नमस्कार करो । पुत्र नीचे तो आया, पर 'नाथ' शब्द उसके मन में बारम्बार खटकने लगा। इसी एक शब्द ने उसके चिन्तन को मोड़ दिया और क्रमश: जीवन को भी। दूसरा कोई मेरा नाथ बने, इससे तो यही अच्छा होगा कि मैं स्वयं ही अपना नाथ बन जाउँ। जो स्वयं का नाथ बन जाता है, वह सारे जगत का नाथ बन जाता है। अतः उसने संयम-ग्रहण करने का निर्णय कर लिया। उसके ३२ पत्नियाँ थीं। वह प्रतिदिन एक-एक पत्नी का त्याग करने लगा। शालिभद्र की बहन भद्रा का व्यंग्य सुनकर उसके बहनोई धन्ना सेठ भी दीक्षा लेने को प्रस्तुत हो गये । उन्होंने शालिभद्र की वैराग्य - भावना को सम्पुष्ट किया तथा दोनों अप्रमत्त होकर साधना - पथ पर चल पड़े। भगवान् महावीर से दोनों ने साधु-जीवन स्वीकार किया और उत्कृष्ट साधना कर समाधि-मरण प्राप्त किया । ६.३.२७ श्रीदशार्णभद्र गीतम् अहंकार भी कभी-कभी आत्म-संस्कार करने में सहायक सिद्ध हो जाता है। कवि ने लिखा है कि दशार्णभद्र नामक राजा ने विचार किया कि मैं भगवान् महावीर को इतने वैभव के साथ वन्दन करने जाऊँ कि इसमें कोई भी मेरी बराबरी न कर सके । वह अत्यधिक आडम्बर के साथ भगवान् को वन्दना करने रवाना हुआ। इन्द्र ने उसका अहं नष्ट करने के लिए दशार्णभद्र से अनेक गुणा अधिक आडम्बर सहित आकर भगवान् को वन्दना की । इन्द्र से इस तरह पराजित होने पर दशार्णभद्र के विचारों में परिवर्तन आया और उसने तत्काल मुनि दीक्षा ले ली। इस प्रकार इन्द्र को अपने पैरों पर झुका लिया । इन्द्र ने उसकी प्रशंसा की । दशार्णभद्र क्रमश: कर्मक्षय करके सिद्ध-बुद्ध हुए । प्रस्तुत गीत ९ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचनाकाल अनुपलब्ध है। ६. ३.२८ श्री सुकोशल साधु गीतम् इस गीत में ६ पद्य हैं। इसका रचना-काल कवि ने सूचित नहीं किया है। इसकी विषय-वस्तु इस प्रकार है साकेत नामक एक नगर था । उसमें सहदेवी नामक एक महिला रहती थी, जिसके पुत्र का नाम सुकोशल था। सुकोशल ने संसार को असार समझकर प्रव्रज्या वरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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