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________________ २३४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पिला दिया। शुभध्यान का स्मरण करते हुए मुनि ने केवलज्ञान अर्जित किया और मोक्षपद प्राप्त किया। ६.३.१४ श्री नमि-राजर्षि गीतम् ___श्री नमि-राजर्षि गीतम्' का रचना-काल अज्ञात है। गीत में ७ गाथाएँ हैं। प्रस्तुत गीत का वर्णित विषय 'चार प्रत्येकबुद्ध-रास' के तृतीय खण्ड के वर्णित विषय से संबंधित है, जिसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। अतः यहाँ इस संबंध में लिखना पुनरावृत्ति-दोष से ग्रस्त होना है। ६.३.१५ श्री इलापुत्र सज्झाय 'श्री इलापुत्र सज्झाय' इलापुत्र की जीवनी को प्रस्तुत करती है। इलापुत्र श्रेष्ठीपुत्र होते हुए भी एक नटकन्या से कामासक्त होकर नगर-नगर भटकता है और नट-कला का प्रदर्शन करता है, लेकिन एक अनासक्त श्रमण को एक सुन्दरी से आहार लेते हुए देखकर वह भी विरक्त हो गया और उसने आध्यात्मिक विशुद्धि के द्वारा केवल-ज्ञान अर्जित किया। गीत ९ गाथाओं में निबद्ध है। इसका रचना-समय अनुपलब्ध है। ६.३.१६ श्री नमि प्रत्येकबुद्ध गीतम् इस गीत में 'नमि' नामक तृतीय प्रत्येकबुद्ध' का संक्षेप में जीवन-वृत्त गुम्फित है, जिसका विस्तृत वृत्तान्त हम 'चार प्रत्येकबुद्ध-रास' का परिचय देते हुए दे आए हैं। प्रस्तुत गीत में ६ कड़ियाँ हैं । गीत का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.३.१७ श्री नग्गई चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध गीतम् विवेच्य रचना ६ गाथाओं में आबद्ध है। इसका रचना-काल कवि ने नहीं दिया है। इस रचना में नग्गति नामधेयक 'चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध' का गुणानुवाद करते हुए उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला गया है। नग्गति की जीवनी हमने 'चार प्रत्येकबुद्ध रास' के वर्णन में दी है। ६.३.१८ श्री आदीश्वर ९८ पुत्र-प्रतिबोध गीतम् यह एक उपदेशात्मक रचना है। आदि तीर्थङ्कर ऋषभनाथ अष्टापद-गिरि पर विहरण कर रहे थे। वहाँ उनके ९८ पुत्र भी पहुँच गये। पुत्रों ने उन्हें अपनी गार्हस्थिक परिस्थितियों से अवगत कराते हुए कहा कि भरत भैया हमारा राज्य हस्तगत करना चाहते हैं। अब वे राज्यादि सुखों में मूर्च्छित हो गये हैं। इसके प्रत्युत्तर में प्रभु ने जो वैराग्यपरक उपदेश दिया था, उसे ही कवि ने प्रस्तुत कृति में मुख्य रूप से अंकित किया है। उनके उपदेश से सभी पुत्र प्रतिबोधित हुए और प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। समयसुन्दर का कथन है कि उन्होंने यह रचना सूयगडांग (सूत्रकृतांग) सूत्र के आधार से प्रणीत की है। इस कृति में ४० गाथाएँ हैं । समयसुन्दर ने हाथी शाह की प्रेरणा एवं आग्रह से यह रचना लिखी थी। यह रचना कब लिखी गई - इसका कवि ने कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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