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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
६. २.३.२८ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवनम्
प्रस्तुत स्तवन में गौड़ी पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है । कवि का कहना है कि गौड़ी पार्श्वनाथ का तीर्थ चामत्कारिक एवं प्रसिद्ध है । यहाँ का अधिष्ठायक यक्ष भक्तों का मनोवांछित कार्य सिद्ध करता है। इस तीर्थ की यात्रा करने के लिए अनेक यात्री - संघ यहाँ आते हैं। कवि समयसुन्दर बताते हैं कि मेरे घुटने अस्वस्थ होने के कारण मैं इस तीर्थ की यात्रा नहीं कर पा रहा हूँ । अतः दूर बैठे ही मैं गौड़ी पार्श्वनाथ को सभक्ति वन्दन करता हूँ । यह स्तवन ७ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना - काल अज्ञात है ।
६. २.३.२९ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवनम्
प्रस्तुत गीत में ७ पद्य हैं । इस गीत के रचना- काल का कवि ने उल्लेख नहीं किया है। इस गीत में कवि ने गौड़ी पार्श्वनाथ की प्रार्थना करते हुए यह बताया है कि यहाँ भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से यात्री संघ यात्रा करने के लिए आते हैं। वे यहाँ भावभक्तिपूर्वक द्रव्यपूजा एवं भावपूजा करते हैं । कवि ने भी अपनी भक्ति-भावना प्रस्तुत गीत में व्यक्त की है।
६.२.३.३० श्री नागोरमण्डन पार्श्वनाथ स्तवनम्
विवेच्य गीत की रचना वि० सं० १६६१, चैत्र कृष्णा ५ को सम्पूर्ण हुई थी । इसमें ८ गाथाएँ हैं, अन्त में 'कलश' भी लिखा गया है। इस गीत में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की प्रार्थना की गई है।
६. २.३.३१ श्री सांचोर तीर्थ महावीर जिन स्तवनम्
विश्लेष्य रचना में 'जिन प्रतिमा जिन सारखी जाणउ' की भावना व्यक्त करते हुए और प्रतिमा की शाश्वतता सिद्ध करने के लिए कतिपय आगमिक दृष्टान्तों का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त कवि ने तीर्थङ्कर की स्तुति करते हुए अपने जीवन को सफल माना है।
रचना 'कलश' सहित १४ गाथाओं में निबद्ध है। इसकी रचना वि० सं० १६७७ माघ माह में हुई थी ।
६.२.३.३२ जैसलमेर-मण्डन महावीर जिन विज्ञप्ति स्तवन
प्रस्तुत रचना 'महावीर विनती' के नाम से जैन समाज में प्रख्यात है। इस रचना कवि समयसुन्दर प्रभुभक्ति में रंगे हुए दृष्टिगत होते हैं । परम तत्त्व के साक्षात्कार की इसमें तीव्र जिज्ञासा व्यक्त की गई है। कवि ने इसमें तीर्थङ्कर महावीर के लोकोद्धारक रूप का वर्णन करते हुए उनके द्वारा किये गये उद्धारों पर सम्यक् प्रकाश डाला है । कवि का भी उद्धार हो – यही प्रस्तुत रचना के प्रणयन का लक्ष्य प्रतीत होता है ।
रचना १९ गाथाओं में निबद्ध है, अन्त में 'कलश' भी हैं । कवि ने इसकी रचना जैसलमेर में की थी । रचना - समय का उल्लेख कवि ने नहीं किया है। 'मौन एकादशी
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