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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २२३ आज वह प्रभु का दुर्लभ दर्शन प्राप्त कर सका है। अब वह शीतलनाथ प्रभु के अतिरिक्त अन्य किसी भी देव को नहीं स्वीकार करेगा। कवि का कहना है कि भला चिन्तामणि प्राप्त होने पर कांच को कौन ग्रहण करता है? गीत में उपमा-अलंकार का मनोहर चमत्कार प्रदर्शित है। कवि समयसुन्दर भी कबीर, तुलसी के समान नामस्मरण की महिमा बताते हुए कहते हैं - तुम दरसण हो मुझ आणंदपूर कि, जिम जगि चन्द चकोरड़ा। तुम दरसण हो मुझ मन उछरंग कि, मेह आगम जिम मोरड़ा ॥२॥ तुम नामइ हो मोरा पाप पुलाय कि, जिम दिन ऊगई चोरड़ा। तुम नामइ हो सुख संपति थाय कि, मनवंछित फलइ मोरड़ा ॥३॥ अन्त में कवि ने प्रभु से प्रार्थना की है कि उसे प्रत्येक जन्म में उनके दर्शन और उनके चरणों की सेवा प्राप्त होती रहे। गीत में १५ पद्य हैं । गीत का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.२.३.१७ मेड़तामण्डन विमलनाथ पंच कल्याणक स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन में तीर्थंकर विमलनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण - इन पंच कल्याणकों एवं उनके जीवन-वृत को संक्षेप में निबद्ध किया गया है। स्तवन में कुल १५ पद्य हैं। स्तवन के अन्त में 'कलश' भी लिखित है। रचनाकाल अज्ञात है। ६.२.३.१८ पाटण शान्तिनाथ पंचकल्याणकगर्भित देवगृह-वर्णनयुक्त दीर्घस्तवनम् प्रस्तुत गीत का रचना-काल अनुपलब्ध है। गीत का रचना-स्थल पाटण है। गीत २५ पद्यों में निबद्ध है। इसके १६ पद्य और सत्रहवें का आधा पद्य अप्राप्य है। गीत के अन्त में लिखित 'कलश' एवं शीर्षक से यह अनुमान किया जाता है कि उन पद्यों में तीर्थङ्कर शांतिनाथ के पंचकल्याणक का वर्णन होगा। प्राप्त पद्यों में पाटण के देवगृह का वर्णन है। उससे ज्ञात होता है कि वह मंदिर कला आदि की दृष्टि से उस समय काफी प्रसिद्ध रहा होगा। ६.२.३.१९ जैसलमेरमण्डन श्री शांतिजिन स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन में जैसलमेर के शान्ति जिनालय के नायक तीर्थङ्कर शान्तिनाथ की स्तुति की गई है। स्तुति में कवि ने मंदिर का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इससे यह ज्ञात होता है कि उस समय मंदिर में शत्रुञ्जय-पट एवं सतरह सौ जिनप्रतिमाएँ थीं। मंदिर के मूलनायक की प्रतिष्ठा जिन्समुद्रसूरि ने वि० सं० १५३६, फाल्गुन शुक्ला ३ को कराई थी। गीत में ७ गाथाएँ हैं। गीत का रचना-काल तथा रचना-स्थल अप्राप्य है। ६.२.३.२० श्री गिरनार तीर्थ भास इसमें गिरनार-तीर्थ की वन्दना की गई है। गीत में यह भी सूचित है कि इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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