________________
समयसुन्दर की रचनाएँ
२२१
साथ ही साथ आबू तीर्थ की अद्भुत कलाकृतियों का भी उल्लेख किया है । वि० सं० १६५७, चैत्र कृष्णपक्ष ४ को कवि ने इस तीर्थ की ससंघ यात्रा की थी और उसी दिन इस स्तवन की रचना की थी । रचना ७ गाथाओं में निबद्ध है ।
६.२.३.९ श्री आबू आदीश्वर भास
श्री 'आबू आदीश्वर भास' ७ गाथाओं में निबद्ध है। इसका रचना - काल कवि ने निर्दिष्ट नहीं किया है । कवि की अन्य रचना ' श्री आबू तीर्थ स्तवन' में प्राप्त उल्लेखों से अवगत होता है कि कवि वि० सं० १६५७, चैत्र कृष्णपक्ष ४ को आबू पहुँचे थे । अतः सम्भवतया प्रस्तुत रचना का निर्माण भी उक्त समय के लगभग हुआ होगा ।
इस भास में आबू पर प्रतिष्ठित चार भव्य जिनालयों का वर्णन करने हुए कवि ने उनकी हृदयहारी वन्दना की है।
६.२.३.१० श्री राणकपुर आदिनाथ जिन स्तवन
समयसुन्दर वि० सं० १६७२, मार्गशीर्ष मास में राणकपुर तीर्थ के दर्शनार्थ गये थे। उसी समय उन्होंने यह रचना लिखी थी। इसमें उन्होंने राणकपुर के नलिनीगुल्म देवविमान तुल्य चित्ताकर्षक मंदिर का वर्णन किया है। रचना ७ गाथाओं में आबद्ध है । ६.२.३.११ बीकानेर चौवीसटा चिन्तामणि आदिनाथ स्तवन
प्रस्तुत स्तवन की रचना बीकानेर में सं० १६८३ के मार्गशीर्ष मास में हुई थी । स्तवन में १५ पद्य हैं, अन्त में 'कलश' भी है। स्तवन के प्रथम पाँच पद्यों में कवि ने जिस विधि और भाव से मंदिर में चैत्यवन्दन आदि किया था, उसका वर्णन किया है। शेष पद्यों में मंदिर का सुन्दर चित्रण किया गया है । कवि ने इस गीत में यह भी उल्लेख किया है कि उन्होंने इस मंदिर के तलघर में पाषाण और पीतल की सैकड़ों जिनप्रतिमाओं का दर्शन किया था। साथ ही मंदिर के ऊपरी तल में जिनदत्तसूरि तथा जिनचन्द्रसूरि की मनोहर मूर्तियों का भी ।
६.२.३.१२ विक्रमपुर आदिनाथ स्तवन
प्रस्तुत स्तवन में १० पद्य हैं। इसमें कवि ने विक्रमपुर तीर्थ के तीर्थाधिपति आदिनाथ की भावभीनी स्तुति की है। स्तवन में कवि ने अपनी पूर्व में की गई प्रमुख यात्राओं का भी उल्लेख किया है। साथ ही यह बताया है कि मारवाड़ का विक्रमपुर - तीर्थ, शत्रुंजय तीर्थ का एक दूसरा अवतार है। जिनचन्द्रसूरि ने सं० १६६२, चैत्र वदि ७ को इस मंदिर की प्रतिष्ठा की थी। इस मंदिर में ४० जिनप्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई थीं - इस तथ्य का स्पष्टीकरण प्रस्तुत गीत से होता है ।
गीत का रचना - काल आदि अज्ञात है ।
६.२.३.१३ गणधरवसही (जैसलमेर) आदिजिन स्तवन
प्रस्तुत रचना १२ ढालों में गुम्फित है । प्रत्येक ढाल में एक-एक पद्य निबद्ध है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org