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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व साहित्य का एक द्युतिमान हीरा है। इसमें कवि की प्रगाढ़ भक्ति अभिव्यंजित हुई है। कविवर सीमन्धर जिनेश्वर की स्तुति करते हुए कहते हैं कि
नही माँगूं प्रभ राज-ऋद्धि जी, नहीं माँगें ग्रन्थ भंडार । हुँ माँगूं प्रभो एतलो जी, तुम पासे अवतार ॥ देव न दीधी पांखडी जी, किम करि आवुं हजूर ।
मुजरो म्हारो मानजो जी, प्रह ऊगमते सूर ॥
विशेष्य रचना का रचना - काल तथा रचना - स्थान, दोनों विदित नहीं हो पाए । यह रचना अनेक स्थानों से एवं अनेक ग्रन्थों में मुद्रित है। ६.१.४.७ सीमन्धरजिन-स्
-स्तवन
यह रचना ६ कड़ियों में लिखी गई है। इसमें विहरमान सीमन्धर प्रभु के जीवन- वृत्त को अंकित किया गया है। इसका रचना स्थल एवं समय, दोनों अज्ञात हैं। ६.१.४.८ सीमन्धरजिन - गीतम्
इसमें परमात्मा की सेवा के रहस्य उद्घाटित करते हुए कवि ने परमात्म-दर्शन की तीव्र उत्कण्ठा अभिव्यक्त की है। गीत ७ गाथाओं में आबद्ध है। इसका रचना - काल और रचना - स्थल, दोनों ही अनिर्दिष्ट हैं ।
६.१.४.९ सीमन्धरस्वामी -गीतम्
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इस गीत का रचना - काल अनिर्दिष्ट है । यह गीत छः गाथाओं में लिखित है । इस गीत में समयसुन्दर ने तीर्थङ्कर सीमन्धर के गुण, लांछन, प्रभाव और उनके माता-पिता, प्रभृति का उल्लेख किया है। साथ ही साथ कवि ने उन भव्य आत्माओं को अभिनन्दित किया है, जो परमात्मा का नित्य दर्शन और उनका उपदेश श्रवण करते हैं । ६.१.४.१० श्री सुमतिनाथ बृहत्स्तवनम्
प्रस्तुत स्तवन में समयसुन्दर ने सुमतिनाथ प्रभु की श्रद्धासिक्त स्तुति करते हुए उन्हें सुरतरु बताया है तथा उनसे 'सुमति' की याचना की है । स्तवन में १३ गाथाएँ हैं । रचना - काल अनिर्दिष्ट है ।
६.१.४.११ श्री शांतिजिनस्तवनम्
इस गीत में ६ पद्य हैं। इसका प्रणयन-काल अनुपलब्ध है। इस गीत में कवि ने शान्तिनाथ जिनेश्वर से शान्ति फल प्रदान करने के लिए और आवागमन के चक्र से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की है।
६.१.४.१२ श्री पार्श्वजिन दृष्टान्तमय लघु स्तवन
इस गीत में भत्र - भ्रमण से मुक्त होने की और परमात्मा के दर्शन की प्रबल पिपासा प्रकट हुई है। रचना का गुम्फन ९ गाथाओं में हुआ है। रचना का रचना-संवत् अवर्णित है।
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