SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दर की रचनाएँ ६.१.१.७ श्री पार्श्वनाथ श्रृंखलामय लघु स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन में ९ पद्य हैं। इसके रचना- काल की कवि ने सूचना नहीं दी है । इस स्तवन में तीर्थङ्कर पार्श्वप्रभु की स्तुति करते हुए उनके निरतिशय सद्गुणों को प्रदर्शित किया गया है। ६.१.१.८ यमकमयं पार्श्वनाथ लघु स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन ८ पद्यों में निबद्ध है। प्रथम सात पद्यों में भगवान् पार्श्व की स्तुति और आठवें में इस रचना का उपसंहार किया गया है। इसके सभी पद्यों में यमक अलंकार प्रयुक्त हैं। इसका रचना - काल एवं रचना - स्थल दोनों अज्ञात हैं। इसके सप्तम पद्य का प्रथम पाद त्रुटित है। इस स्तवन का मुद्रण भी कहीं-कहीं त्रुटिपूर्ण-सा लगता है, जिससे अर्थ-बोध में और कठिनाई होती है। २०९ ६.१.१.९ यमकमयं महावीर वृहद्स्तवनम् प्रस्तुत गीत भी यमकबद्ध है। इसमें कुल १४ पद्य हैं, जिनमें प्रथम तेरह पद्य में तो भगवान् महावीर का स्तवन किया गया है और अन्तिम पद्य उपसंहारात्मक है। इसमें भगवान् महावीर को सभी विघ्नों के विनाशक, ग्रहशान्तिकारक, जगत्वन्द्य, समस्त गुणों के आकर, अप्रतिम सौंदर्यसम्पन्न, त्रिलोक के अज्ञान के निवारक, करुणानिधान, परम पवित्र, सज्जनों के सुखदायक और मोक्षदायक के रूप में चित्रित किया गया है। इस स्तवन का रचना - काल आदि अविदित है । ६.१.१.१० समस्यामयं पार्श्वनाथ वृहत्स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन समस्या की पूर्ति रूप है। इसमें कुल १३ समस्या - पूर्ति हैं । प्रत्येक पद्य में एक ही समस्या-पूर्ति हुई है । समयसुन्दर समस्या-पूर्ति में बड़े निपुण थे । अतः प्रत्येक समस्या-पूर्ति बहुत सुन्दर हुई है । १३ पद्यों में निबद्ध समस्या - -पूर्ति रूप इस स्तवन में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की सुन्दरतम स्तुति की गई है। प्रस्तुत स्तवन में भिन्न-भिन्न छन्दों का प्रयोग हुआ है। स्तवन के प्रथम पद्य का तृतीय पाद, द्वितीय पद्य का प्रथम एवं द्वितीय पाद, दशम पद्य का प्रथम, तृतीय एवं चतुर्थ पाद, एकादश पंद्य का प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ पाद, द्वादस पद्य का द्वितीय पाद, त्रयोदश पद्य का द्वितीय पाद त्रुटित है। रचना का रचना - काल एवं रचना स्थल अज्ञात है ६.१.१.११ श्री वीतरागस्तव - छन्दजातिमयम् I प्रस्तुत स्तोत्र में वीतराग के गुणों का वर्णन करते हुए उनका माहात्म्य प्रदर्शित किया गया है। इस स्तोत्र की विलक्षणता यही है कि जिस पद्य की रचना जिस छन्द में की गई है, उस छन्द के नाम का उल्लेख उसी पद्य में है, किन्तु वहाँ उस शब्द का अर्थ भिन्न है। इसमें पृथक्-पृथक् २२ छन्द प्रयुक्त हुए हैं। इसका रचनाकाल अनुपलब्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy