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________________ २०२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुत समय से अभीप्सा थी। इससे ऐसा लगता है कि कवि ने इसकी रचना कर एक विशिष्ट आत्म-शान्ति का अनुभव किया होगा - हूंस हुती मुझनइ घणी, घणा दिवस नी एह । करिस्युं साधु नइ वंदना, आज सफल थइ तेह ।। ध्यान धरता साधुनउ, चोखउ थायइ चित्त। जीभ थायइ गुण जोडतां, सुणितां कान पवित्त ।। प्रस्तुत रास में १८ ढालें हैं। इसकी रचना अहमदाबाद में वि० सं० १६९७ के चैत्र मास में पूर्ण हुई। कवि ने स्वयं निर्देश किया है - संवत् सोल सत्ताणूये, चैत्र मास श्री अहमदाबादो रे। समयसुन्दर कहइ मइ कीधी, साधु वन्दना गुरु परसादो रे॥ आलोच्य रास की हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ अभय जैन ग्रन्थालय और श्री खजांची संग्रह, बीकानेर में उपलब्ध हैं। यह रास अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। ४.३.३ केशी-प्रदेशी-प्रबन्ध यह एक लघु प्रबन्ध है। इसमें कथा के माध्यम से आत्मा और शरीर की पृथकता को सिद्ध किया गया है। प्रस्तुत प्रबन्ध में कवि ने लिखा है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमण केशी श्वेताम्बिका नगरी के मन्त्री चित्त के निमन्त्रण पर श्रावस्ती नगरी से श्वेताम्बिका आए। वहाँ का राजा नास्तिक था। केशी और प्रदेशी में प्रश्रोत्तर हुए। प्रदेशी ने अनेक उदाहरण देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि शरीर से व्यतिरिक्त आत्मा का कोई पृथक् अस्तित्व नहीं है। केशी ने उसके अभी उदाहरणों का पुष्ट प्रमाणों से खण्डन कर यह प्रमाणित कर दिया कि शरीर एवं आत्मा दोनों पृथक्-पृथक् हैं। कवि ने ये प्रश्नोत्तर बड़ी ही सटीक शैली में लिखे हैं। अन्त में श्रमण केशी से प्रतिबोधिक होकर राजा श्रमणोपासक बन गया और उसने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण कर लिये। वह धर्माराधना करता हुआ समाधिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ और सूर्याभ नामक विमान में उत्पन्न हुआ। वहाँ से अपनी आयु शेष कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। ___ कवि समयसुन्दर ने प्रबन्ध के अन्त में यह भी निर्देश दिया है कि यह केशीप्रदेशी-प्रबन्ध मैंने रायपसेणी (राजप्रश्रीय) सूत्र के आधार पर कहा है। प्रबन्ध चार ढालों में गम्फित है। इसमें समग्र ५७ पद्य हैं। इसका लेखन-काल सं० १६९९, चैत्र सुदि २ है। समयसुन्दर से पूर्व जिन जैन मुनियों ने प्रस्तुत कथानक पर रचना लिखीं, उनमें कुशलरुचि का नाम उल्लेख्य है। उनके परवर्ती काल में भी चारित्रोपाध्याय आदि ने इस कथा को निबद्ध किया है। विवेच्य कृति अहमदाबाद की हाजापटेल पोल के मध्यवर्ती खरतरगच्छ उपाश्रय में लिखी गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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