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________________ १९२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व चौपाई के आरम्भ में श्रावक व्रतोपयोगी २१ गुणों को बतलाया गया है, जिनमें व्यवहारशुद्धि गुण सर्वप्रधान है। ___ अयोध्या नगरी में श्रेष्ठी धनदेव का पुत्र धनदत्त निवास करता था। बालवय में ही उसे माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। एक बार उसने धर्मघोषसूरि के प्रवचन से प्रभावित होकर व्यवहार-शुद्धि का नियम स्वीकार किया कि वाणिज्य-व्यवसाय में न न्यून दे, न अधिक ले, अच्छी वस्तु को बुरी न कहे, बुरी को अच्छी न कहे, जिस समय देने का वायदा किया हो, उसी समय दे, मिथ्या भाषण न करे आदि। ___अयोध्या में व्यवसाय न चलने से धनदत्त धनोपार्जन के लिए विदेश गया। उसकी पत्नी ने उसे विदेश में भी इस नियम का पालन करने को कहा। विदेश में उसने एक सेठ के यहाँ नौकरी की, लेकिन सेठ का अशुद्ध व्यवहार देख कर उसने नौकरी छोड़ दी। तत्पश्चात् एक गाँव में उसने एक श्राविका के यहाँ नौकरी की, किन्तु यहाँ भी उसके नियम का पालन न हो पाने के कारण धनदत्त अपना हिसाब लेकर साथियों से जा मिला। साथियों को स्वनगर जाते समय बिंजौरे के फल अपनी पत्नी को देने के लिए दिये। साथी प्रवहण से गये। मार्ग में उनके बिंजौरे के फल से एक राजकुमार का दाह-ज्वर समाप्त हो गया। तदर्थ उन्हें उसका प्रचुर धन मिला। सभी साथी अयोध्या पहुँचे। धनदत्त के मित्र ने वह सारा धन उसकी पत्नी को दे दिया। पत्नी को शंका हुई कि उसके पति ने अपना व्रत भंग कर दिया है, परन्तु मित्र द्वारा द्रव्य-प्राप्ति का सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनकर यह सन्तुष्ट हो गई। अब तो धर्म में उसकी रुचि और अधिक दृढ़ हो गयी। उसने नगर में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली और दान आदि धर्मकृत्य करने लगी। इधर धनदत्त फटेहाल स्वदेश लौटा। पत्नी और मित्र से सारा वृत्त ज्ञातकर वह भी बहुत आनन्दित हुआ और आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। अन्त में उसने संयम-धर्म का पालन करके मोक्ष-पद प्राप्त किया। ४.१.१६ पुंजारत्नऋषि-रास __ पुंजारत्नऋषि के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का प्रतिपादन करती हुई प्रस्तुत कृति कवि की विनीतता, गुणग्राहकता तथा साम्प्रदायिक उदारता को अभिव्यक्त करती है। कवि ने इसकी रचना श्रावण शुक्ला ५, संवत् १६९८ में की थी। इस विषय में कवि ने स्वयं ही लिखा है - संवत् सोल अठाणुवइ, श्रावण पंचमी अजुवालइ रे। रास भण्यो रलियामणो, श्री समयसुन्दर गुण गायइ रे॥ १. पुंजारत्न-ऋषि-रास (३७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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