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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त (घ) देवीदास :
समयसुन्दर वाणारस वंदिये, सुललित वाणी वखाणो जी।
राय रंजण गीतारथ गुणनिलो, महिमा मेरु समाणो जी॥ (ङ) विनयचन्द्र :
ज्ञान-पयोधि प्रबोधिवारे, अभिनव शशिहर प्राय। कुमुदचन्द्र उपमान बहे रे, समयसुन्दर कविराय॥ ततपर शास्त्र समरथिवारे, सार अनेक विचार।
वलि कलिन्दीका कमलिनी रे, उल्लासन दिनकार ॥२ (च) उपाध्याय लब्धिमुनि :
महोपाध्याय सुख्यात, कविश्रेष्ठ- विशारदः। सकलचन्द्र - शिष्योभूद्गणि समयसुन्दरः। संस्कृत-गद्य-पद्यात्म-ग्रन्था अनेन भूरिशः।
स्वाध्यायस्तव-रासाद्या, भाषात्मकाः प्रचक्रिरे ॥३ तृतीय प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत आधुनिक विद्वानों द्वारा लिखे गये शोधपूर्ण लेख तथा ग्रन्थों की भूमिकाएँ आती हैं। इनमें कवि के जीवन-वृत्त को सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है, जिनका विवरण प्रथम प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत पूर्व में दिया जा चुका है। परवर्ती कवियों की रचनाओं में प्रयुक्त कवि समयसुन्दर के जीवन-वृत्त विषयक उल्लेखों के आधार पर उनकी जीवनी में कुछ नवीन आयाम भी प्रस्तुत हुए हैं। माता-पिता, गोत्र, जन्म-दीक्षा-अवस्था, शिक्षण, पदवी, पर्यटन-क्षेत्र आदि जो अप्राप्य तथ्य प्रकाश में आये हैं, वे आधुनिक विद्वानों की ही देन हैं। संक्षेप में यह सामग्री इस प्रकार है(क) श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने 'कविवर समयसुन्दर' नामक अपने निबन्ध में तथा जैन गूर्जर कविओ, प्रथम भाग एवं जैन साहित्य नो इतिहास'६ नामक कृतियों में कवि के व्यक्तित्व और कृतित्व का सर्वप्रथम प्रामाणिक एवं विस्तृत परिचय दिया है।
१. नलदवदन्ती-रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३५ २. उत्तमकुमार-चरित्र-चौपाई (३.८-९) रचनाकाल सं. १७५२ ३. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-चरितम्, पृष्ठ ८९, ९१ ४. यह निबन्ध सप्तम गुजराती साहित्य-परिषद में पठित एवं जैन-साहित्य-संशोधक',
भाग २, अंक ३-४ में प्रकाशित है। ५. जैन गूर्जर कविओ, भाग १, (पृष्ठ ३३१-३९१) ६. जैन साहित्य नो इतिहास, प्रकरण ४-५
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