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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उधर सातों बहिनें पति-विरह में रोने लगीं। गुणसुन्दरी ने नीचे जाकर दीवार पर लिखित अभिलेख को पढ़ा और पति-परिचय का अन्वेषण पा लिया। उसने पिता से पुरुष-पोषाक लेकर छ: माह में पति-प्राप्ति की प्रतिज्ञा कर विदा ली। वह गोपाचल में गुणसुन्दर कुमार के नाम से उद्योग करने लगी और सफल व्यवसायी के रूप में ख्याति अर्जित कर ली। एक दिन रत्नवती उस पर मुग्ध हो गई। अयोग्य सम्बन्ध होते हुए भी रत्नसार के अत्यधिक आग्रह से उसे उससे विवाह करना पड़ा।
जब पुण्यसार आत्महत्या करने लगा, तो देवी ने भावी विधान देखने को कहा। छ: मास बीत जाने पर एक दिन गुणसुन्दरी अग्नि-प्रवेश करने लगी। सारा नगर इसके लिए चिन्तातुर हुआ। राजा स्वयं आया। उसने पुण्यसार को इसे समझाने के लिये कहा। दोनों ने अपनी वियोग-घटना कही। दोनों मिल गये। रत्नवती भी पुण्यसार को सहज ही मिल गई। वह आठ रानियों सहित सानन्द काल-निर्गमन करने लगा।
एकदा ज्ञानसागर नामक ज्ञानी मुनि गोपाचलपुर आए। पुरन्दर सेठ ने पुण्यसार का पूर्वभव पूछा, जिसे सुनकर उसने पुण्यसार को गृहभार सौंपा और प्रव्रजित हो गया। पुण्यसार ने भी श्रावक-धर्म का पालन करते हुए अन्त में जिन-दीक्षा अङ्गीकार की और समाधि-मरण प्राप्त किया।
प्रस्तुत कथा पर विवेकसमुद्रगणि', अजितप्रभसूरि तथा भवचन्द रचित कृतियाँ भी प्राप्त होती हैं, जो कि संस्कृत में हैं। ४.१.६ नलदवदन्ती-रास
___'नलदवदन्ती-रास' कविप्रवर समयसुन्दर की पद्यबद्ध भाषा-कृतियों में प्रमुख कृति है। इस रचना के प्रणयन के लिये रायमल गोलछा के पुत्र नेतसी का कविवर को आग्रह था। रचना के अन्त में कवि ने इसका निर्देश किया है -
उवझाय इम कहइ समयसुन्दर, कीयऊ आग्रह नेतसी।
चउपई नलदवदन्ती केरी, चतुर माणस चितवसी॥
कवि ने छः खण्डों में विभक्त इस ग्रन्थ की रचना वि.सं. १६७३ में मेड़ता (राजस्थान-प्रान्त) नगर में की थी। इस कृति की समाप्ति पर इसकी तिथि का तथा रचनास्थल का उल्लेख इस प्रकार किया है - १. जिनदत्तसूरि ज्ञान-भण्डार-कार्यवाहक ट्रस्ट, सूरत से वि० सं० २००१ में प्रकाशित। २. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २५१ ३. हीरालाल हंसराज, जामनगर से सन् १९२५ में प्रकाशित। ४. नलदवदन्ती रास (६.१०.३)
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