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समयसुन्दर की रचनाएँ
१५१ तो जल-भुन गई।
एक बार तीर्थङ्कर नेमिनाथ द्वारिका पधारे। शाम्ब और प्रद्युम्न ने उनके उपदेश से प्रतिबोधित होकर जिन दीक्षा ले ली। उत्कृष्ट संयम-चर्या करते हुए दोनों भाइयों ने अन्त में विमलगिरि पर संलेखना ग्रहण की और कैवल्य प्राप्त कर सिद्ध-बुद्ध बने। इसी के साथ दूसरा खण्ड समाप्त हो जाता है।
_प्रस्तुत ग्रन्थ अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ स्व० पूरणचन्द नाहर, कोलकाता के निजी ज्ञान भण्डार में, अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में और जैन श्वे० पंचायती बड़ा मंदिर ज्ञान भण्डार, वाराणसी में उपलब्ध हैं। ४.१.२ चार प्रत्येकबुद्ध-चौपाई
जिसने बोधि प्राप्त कर ली है, वह बुद्ध कहलाता है। बुद्ध तीन प्रकार के होते हैं - १. स्वयं-बुद्ध, २. प्रत्येक-बुद्ध और ३. बुद्ध-बोधित। जो स्वयं चिन्तन के द्वारा बोधि प्राप्त करता है, वह स्वयं-बुद्ध कहलाता है। जो किसी एक घटना के कारण बोधि पाता है, उसे प्रत्येक-बुद्ध कहा जाता है। जो बोधि-प्राप्त व्यक्तियों के उपदेश से बोधिलाभ करते हैं, वे बुद्ध-बोधित कहे जाते हैं। समयसुन्दर विरचित इस रास का सम्बन्ध प्रत्येकबुद्ध से है। उत्तराध्ययनसूत्र के नवमें अध्याय में नमि नामक एक प्रत्येक-बुद्ध के जीवन की एक विशेष घटना निबद्ध है और उसके अठारहवें अध्याय में चारों प्रत्येकबुद्धों का नामोल्लेख मात्र है। उत्तराध्ययननियुक्ति में उन चार प्रत्येकबुद्धों का संक्षेप में निर्देश मिलता है, जिनको कवि ने अपने रास का नायक बनाया है। ये चार प्रत्येक-बुद्ध हैं - करकण्डु, द्विमुख, नमि और नग्गति। यद्यपि प्रत्येक-बुद्धों की संख्या में विवाद है, किन्तु समयसुन्दर ने अपनी एक अन्य कृति में विविध प्रमाणों के आधार पर उनकी संख्या कुल ४५ सिद्ध की है।३
उत्तराध्ययन-समागत प्रत्येक-बुद्धों पर समष्टि रूप में अनेक रचनाएँ लिखी गईं। इनमें समयसुन्दर के अलावा श्रीतिलक, जिनरत्न, लक्ष्मीतिलक, जिनवर्धनसूरि, भावविजय, नेमिचन्द्रसूरि आदि द्वारा लिखित काव्य-रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। बौद्धों के पालिसाहित्य में भी उक्त चारों प्रत्येक-बुद्धों की कथाएँ वर्णित हैं।
___कवि समयसुन्दर कृत 'चार प्रत्येक-बुद्ध-चौपाई' में करकण्डु, द्विमुख, नमि और नग्गति - इन चारों प्रत्येक -बुद्धों के जीवन-चरित्र का सुन्दरतम विवेचन है। कवि ने इस रास में उक्त चार प्रत्येक-बुद्धों का स्वतन्त्र पृथक्-पृथक् खण्ड बनाया है। प्रत्येक १. द्रष्टव्य - नन्दी सूत्र (३०) २. द्रष्टव्य - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा २७०-८० ३. विचार-शतक (६०) ४. कुम्भकार-जातक (४०८)
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