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१. पूर्वकथन
साहित्य-संसार में महोपाध्याय समयसुन्दर के पूर्ववर्ती अनेक कवियों ने बहुविध ग्रन्थ-रत्नों की सृष्टि की है, जिनमें नाटक आदि दृश्य-काव्य एवं जीवन - आख्यान, महाकाव्य, मुक्तकादि श्रव्य-काव्य समाहित हैं, जिनके मंचन, अवलोकन, पठन या श्रवण से प्रसुप्त स्थायी भाव उद्दीप्त होकर आस्वादमयी एवं आनन्दमयी लोकोत्तर अनुभूति कराते हैं। संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश और हिन्दी भाषा में जिन पूर्ववर्ती कृतिकारों ने महान् कृतियों का हृदयहारी प्रणयन किया है, वे सभी हमारी साहित्यिक संचेतना और आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए आधारभूत हैं । ये कृतियाँ जीवन में साहस एवं निष्ठा का संचार करती हैं और स्थितप्रज्ञ होने का अनवरत सन्देश प्रदान करती हैं।
इन ग्रन्थ-रत्नों के उल्लेख्य महत्त्व के साथ-साथ जब हम इनके रचयिताओं के जीवन-वृत्त का परिज्ञान प्राप्त करने के विषय में उत्सुक होते हैं, तो गहन उदासीनता एवं निराशा का सामना करना पड़ता है । कवि हाल, कालिदास, स्वयम्भू, पुष्पदन्त, कबीर, जायसी, सूर, तुलसी प्रभृति अनेक मूर्धन्य कवियों के जीवनवृत्त से आज भी हम यथार्थतः अपरिचित ही हैं। इनके पावन एवं प्रेरणास्पद उदात्त जीवन के सम्बन्ध में थोड़ा-बहुत ज्ञान परवर्ती कवियों तथा साहित्यकारों के द्वारा उनके सम्बन्ध में किये गये उल्लेखों से ही प्राप्त हो पाता है। अद्यावधि विद्वत्समाज इन उल्लेखों की व्याख्या के सम्बन्ध में एकमत नहीं हो सका है। यही कारण है कि इनके जीवनवृत्त आज भी विवादास्पद बने हुए हैं। कितना अच्छा होता यदि वे मनीषी अपनी जीवनी भी स्वयं ही वर्णित कर देते ! सम्भवतः उनकी महनीयता ने ही उन्हें यह कार्य करने से रोका होगा कि वे अपने विषय में कभी लेखनी चलाने को सोच भी न सकें । उन्हें क्या पता था कि उनकी जीवनी को अवगत करने के लिए उनकी भावी पीढ़ियाँ इतनी अधिक उत्सुक और लालायित होंगी।
कविवर समयसुन्दर के द्वारा अपना जीवन-वृत्त न लिखने के कारण उनका जीवन-वृत्त भी किसी सीमा तक विवादग्रस्त है ।
- वृत्त की सामग्री
कवि समयसुन्दर के जीवन-वृत्त के सन्दर्भ में जो सामग्री हमें उपलब्ध होती है, वह अधोलिखित है.
(क)
(ख)
२. जीवन-व
कवि समयसुन्दर की रचनाओं में प्राप्त आत्म - कथन ।
परवर्ती जैन कवियों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में समयसुन्दर एवं उनके सम्बन्ध में प्राप्त उल्लेख।
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