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समयसुन्दर की रचनाएँ
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साथ-साथ स्पष्ट करने का प्रयास किया है । वृत्तिकार ने वृत्ति में कहीं-कहीं प्राचीन व्याख्याकारों द्वारा प्रदर्शित अर्थों से भिन्न अर्थ भी अपनी प्रतिभा द्वारा प्रदान किये हैं । उदाहरणार्थ – प्रथम सर्ग के प्रथम पद्य में प्रयुक्त 'पार्वतीपरमेश्वरो' पद के दो नवीन अर्थ किये हैं
१. (क) पार्वतीप अर्थात् पार्वती के रक्षक
(ख) रमेश्वर अर्थात् रमा के ईश्वर - विष्णु
२. (क) पार्वतीपर अर्थात् पार्वती का भरण-पोषण करने वाला
(ख) मेश्वर अर्थात् मया के ईश्वर - नारायण
प्रस्तुत वृत्ति की हस्तलिखित पाण्डुलिपि जैन भवन, कोलकाता में सुरक्षित है, परन्तु वह अपूर्ण है । प्राप्त पाण्डुलिपि में केवल ६९ पत्र हैं । अत: सम्पूर्ण वृत्ति के परिणाम का उल्लेख करना अशक्य है। महोपाध्याय विनयसागर ने इस वृत्ति का रचना - काल सं० १६९२ और रचना-स्थल खम्भात उल्लिखित किया है ।
२.१२ संदेहदोलावली - पर्याय
'सन्देहदोलावली' नाम से दो विद्वानों ने ग्रन्थ-रचना की है। इनमें एक ग्रन्थ है, जिनदत्तसूरि रचित और दूसरा ग्रन्थ है, प्रबोधचन्द्रगणि कृत । प्रस्तुत कृति जिनदत्तसूरि विरचित 'सन्देहदोलावली' की व्याख्या है।
प्रस्तुति वृत्ति के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मूल ग्रन्थ १५० गाथाओं में निबद्ध है। सम्यक्त्व-प्राप्ति, सुगुरु एवं जैनदर्शन की उन्नति के लिए यह कृति उत्कर्ष पथ का प्रदर्शन करती है एवं तात्कालिक गृहस्थों को, सद्गुरुओं तथा पार्श्वस्थों (शिथिलाचारियों) के प्रति किस प्रकार व्यवहार करना चाहिये इत्यादि बातों को विस्तारपूर्वक स्पष्ट करती है । समयसुन्दर ने इस कृति का अपर नाम 'संशयप्रद प्रश्नोत्तर' भी बनाया है। उन्होंने लिखा है कि भटिण्डा की एक श्राविका के सम्यक्त्वमूलक कतिपय प्रश्न थे, जिसके प्रत्युत्तर में जिनदत्तसूरि ने इस रचना का प्रणयन किया था ।
प्रस्तुत कृति का रचना - काल विक्रम संवत् १६९३ है ।
२.१३ वृत्तरत्नाकर - वृत्ति
‘वृत्तरत्नाकर' छन्द:शास्त्र का सर्वमान्य तथा सर्वप्रसिद्ध ग्रन्थ है । आशुकवि समयसुन्दर ने प्रस्तुत कृति में 'वृत्तरत्नाकर' में संकलित विभिन्न छन्दों के रूप और लक्षणों की सविस्तार व्याख्या की है । अतः स्पष्ट है कि कवि का छन्द: शास्त्रीय अध्ययन व्यापक एवं पूर्ण था । 'वृत्त - रत्नाकर' पर की गई विविध व्याख्याओं, टीकाओं में प्रस्तुत वृत्ति भी अपना गौरवपूर्ण स्थान रखती है, तथापि यह अभी तक प्रकाश में नहीं लाई जा सकी है। उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि समयसुन्दर के अतिरिक्त सोमचन्द्रसूरि, क्षेमहंसगणि, १. द्रष्टव्य • समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५
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