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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १२७ ___ 'स्थविरावली' में महावीर की पट्ट-परम्परा में उनके गणधरों से लेकर श्री देवर्धिगणि पर्यन्त जो-जो प्रभावशाली आचार्य हुए हैं, उनका गोत्रादि सहित नाम निर्देश करके उनका स्मरण किया गया है। इसके अलावा प्रमुख-प्रमुख पट्टधरों के शिष्यों, उनसे निःसृत कुल, गण तथा शाखाओं आदि का उल्लेख भी किया गया है। ___ 'साधु-समाचारी' में वर्षावास में स्थित श्रमण-साधुओं और श्रमणी-साध्वियों के आचार-नियमों का उत्सर्ग और अपवाद-सहित वृत्तिकार ने २८ समाचारियों के रूप में वर्णन किया है। वृत्तिकार ने उपर्युक्त तीन अधिकारों को नौ व्याख्यानों में विभक्त किया है१. पंचपरमेष्टि-नमस्कार, २. महावीरस्वामी के च्यवन और गर्भापहार-कल्याणक, ३. महावीरस्वामी की माता के चौदह स्वप्न, ४. महावीर स्वामी का जन्म-कल्याणक, ५. महावीरस्वामी के दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण-कल्याणक ६. पार्श्वनाथ एवं नेमिनाथ के पाँच कल्याणक, ७. अन्तरकाल और ऋषभदेव के पांच कल्याणक,८. स्थविरावली और ९. पर्युषण में साधु-समाचारी। इस सूत्र की १२वीं शताब्दी से २०वीं शताब्दी के मध्य की हजारों हस्तलिखित प्रतियाँ आज भी देश के अनेक शास्त्र-भण्डारों में मिलती हैं। इसीलिए महोपाध्याय विनयसागर का मत है कि इस सूत्र पर जितना साहित्य लिखा गया है, उतना विपुल साहित्य किसी भी आगम-ग्रन्थ पर प्राप्त नहीं होता है। समयसुन्दर कृत 'कल्पलता' वृत्ति अत्यधिक विस्तृत है । फलस्वरूप मूल ग्रन्थ रूपी मंदिर का टीका रूपी कलश अधिक बड़ा बन गया है। इसका प्रकाशन श्री जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार-फण्ड, सूरत से हुआ है। २.६ जयतिहुअण-वृत्ति प्रस्तुत कृति जयतिहुअण-स्तोत्र पर लिखित एक वृहत् वृत्ति है। जयतिहुअणस्तोत्र के रचनाकार नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि हैं। मूल रचना में मात्र ३० पद्य हैं, किन्तु वृत्ति अत्यन्त विस्तृत है। इस वृत्ति की रचना अणहिलपत्तन (पाटण) में वि० सं० १६८७ में हुई थी। वृत्तिकार ने अपने शिष्य मुनि सहजविमल एवं पण्डित मेघविजय के पठनार्थ इस वृत्ति का निर्माण किया था - अणहिलपत्तननगरे , संवति मुन्यऽष्ट शृंगारे । मुनिसहजविमल-पण्डित-मेघविजय-शिष्यपठनार्थम्॥२ १. कप्पसुत्तं, भूमिका, पृष्ठ ७ २. जयतिहुअण-वृत्ति, प्रशस्ति (१-२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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