SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रकट रूप में प्रस्तुत करने में समयसुन्दर दक्ष थे । उन्होंने मूल ग्रन्थ के विषयों का विस्तृत विवेचन तो किया ही है, साथ ही साथ उन्हें नये-नये हेतुओं द्वारा पुष्ट भी किया है। जनहित की दृष्टि से उन्होंने लोकभाषा में भी सरल एवं सुबोध व्याख्यान - ग्रन्थ लिखे हैं । संस्कृत - टीकाओं के लिए उन्होंने विभिन्न नामों का प्रयोग किया है; यथा - टीका, वृत्ति, टिप्पण, विवेचन, व्याख्या, दीपिका, अवचूरि, पर्याय, चूर्णि आदि । समयसुन्दर ने न केवल जैन साहित्य पर टीकाएँ लिखीं, अपितु जैनेतर साहित्य पर भी अनेक टीकाएँ लिखी हैं। उनके प्राप्त सम्पूर्ण टीका - साहित्य के अवलोकन से ज्ञात होता है कि उन्होंने आगम - साहित्य, तदाश्रित प्रकरण - साहित्य, स्तोत्र--साहित्य एवं अन्य साहित्य, जिनका सम्बन्ध जैनेतर साहित्य से है, पर मुख्यत: टीकाएँ लिखी हैं। उनका उपलब्ध सम्पूर्ण टीका - साहित्य निम्नानुसार है २.१ ऋषिमण्डल - टिप्पण २.३ दुरियरसमीरस्तोत्र - वृत्ति २.२ रूपकमाला - वृत्ति २.४ वेरथय-वृत्ति २.६ जयतिहुअण-वृत्ति २.८ भक्तामर-सुबोधिका वृत्ति २.१० दशवैकालिक-वृत्ति २.१२ सन्देहदोलावली - पर्याय २.१४ सप्तस्मरणस्तव-वृत्ति २.१६ दंडक - प्रकरण-वृत्ति २.१८ कुमारसम्भव-वृत्ति २. २० विमलस्तुति - वृत्ति २. २२ माघ - काव्य वृत्ति २.२४ अनिट्कारिका २.५ कल्पलता २.७ चत्तारिपरमंगाणि - व्याख्या २.९ नवतत्त्व-वृत्ति २.११ रघुवंश-वृत्ति २.१३ वृत्तरत्नाकर - वृत्ति २.१५ कल्याणमन्दिर - वृत्ति २.१७ वाग्भटालंकार - टीका २.१९ सारस्वत - वृत्ति २.२१ मेघदूत - प्रथम श्लोक वृत्ति २. २३ लिंगानुशासन - चूर्णि २. २५ मेघदूत - वृत्ति २.१ ऋषिमण्डल - टिप्पण 'ऋषिमण्डल' एक स्तोत्र है, जिसमें आदर्श पुरुषों की भावभीनी स्तुति की गई है। ऋषिमण्डल - स्तोत्र के नाम से अनेक जैन विद्वानों ने रचनाएँ लिखी हैं, जिनमें धर्मघोषसूरि, प्रभचन्द्र आदि कुल ५ विद्वानों की रचनाएँ उपलब्ध हैं। प्रस्तुत वृत्ति की मूल प्रति हमें कहीं भी प्राप्त न होने से यह नहीं कहा जा सकता कि समयसुन्दर ने कौन से ऋषिमण्डल - स्तोत्र की रचना की थी । नाहटा - बन्धुओं एवं महोपाध्याय विनयसागर के उल्लेखानुसार प्रस्तुत वृत्ति का रचनाकाल वि० सं० १६६२, आश्विन मास है और रचना - स्थान संग्रामपुर है। किन्तु यह वृत्ति किस ग्रन्थालय में (क) सीताराम - चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५५ १. द्रष्टवय (ख) समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy