SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ પૂજ્યશ્રીની આરાધના-સાધના અલૌકિક હતી. તો ભવિષ્ય પારખે શક્તિ પણ ગજબ કોટીની હતી. સહસાવનનું કાર્ય ક્યારે થશે, તે તેઓશ્રીએ અમારા પૂ. વડીલશ્રી રંગીલ કાકાને જે સષ્ટ કહેલું તે જ રીતે કાર્ય પૂરું થઇ શક્યું. धन्यछे से महान पूज्यश्रीने........... जिनाज्ञापालक घोरतपस्वी भीकमचंद छाजेड (राजनांदगांव) परम पूज्य गुरुदेव के फलोदी (राजस्थान) चातुर्मास के समय मेरी बाल्यावस्था ही थी। उस चातुर्मासमें मेरे पूज्य काकाजी संपतलालजी छाजेड को आपका शुभ सान्निध्य प्राप्त हुआ। वे पूज्य गुरुदेव के त्याग एवं तपश्चर्या के कारण बहुत प्रभावित थे। समय समय पर गुरुदेव जहां विराजते थे वहाँ मुजसे पत्र लिखवाया करते थे। क्योंकि उनकी लिखावट मारवाडी भाषा की थी। बार बार पत्र लिखने के कारण मेरे मनमें भी पूज्य गुरुदेवके प्रति आस्था हो गई। आपका चातुर्मास पालीताणा सिद्धक्षेत्रमें था । उस समय मेरे पूज्य पिताजी जमनालालजी छाजेड के साथ चातुर्मासमें पालिताणा रहेने का मुजे भी सौभाग्य मिला और उसी चातुर्मासमें पूज्य गुरु देव का सान्निध्य प्राप्त हुआ। पूज्य गुरुदेव ने मुजे एवं श्री धरमचंदजी विनायकिया को धार्मिक अध्ययन कराया। धार्मिक सूत्र याद करने में मुजे अधिक समय लगता था। फिर भी गुरुदेवने बडी प्रसन्नतापूर्वक धार्मिक सूत्र याद कराये। गुरुदेव शुरु सेही तपश्चर्या में लीन रहते थे। अत: उन्हे हिमांशुविजयजी के नाम की बजाय तपस्वी म.सा. के नामसे संबोधन करते थे। लगभग १५ वर्षों के अंतराल में पूज्यश्री के साथ किसी प्रकारका संपर्क नहीं कर सका। हमलोग पालिताणा की यात्रा हेतु गये तब मालूम हुआ कि पूज्य गुरुदेव गारियाधारमें विराजमान हैं। तब मुजे फिरसे दर्शन का सुयोग प्राप्त हुआ। उसके बाद अहमदाबादमें कई बार मुजे व मेरे पारिवारिक सदस्यों को उनका संयोग प्राप्त हुआ। एकबार करीब २ बजे दोपहरमें दर्शनार्थ पहुंचा। उस समय गुरुदेव आयंबिल की गोचरी वापरने के बाद पात्रों का पडिलेहण कर रहे थे। मैने सहजमें पूछा कि ईतनी देर से आयंबिल करते है ! तब विदित हुआ की हमेशा ही गोचरी लाकर रख देते थे एवं जब वह पूरी तरह से ठंडी हो जाती थी उसके बाद ही वापरते थे। वैसे भी आयंबिल तप कठिन है उसमें भी गोचरी ठंडी हो जाने के बाद वापरने की हिम्मत तो ऐसे घोर तपस्वी ही कर सकते हैं। करीब ८ वर्ष पूर्व पूज्यश्रीके दर्शनार्थ अहमदाबाद पहुंचा तब विदित हुआ की पूज्यश्री शाश्वती ओलीकी आराधना हेतु कलिकुंड तीर्थ पधारने वाले है । उस समय वहां जो मुनिभगवंत विराजमान थे उनसे पूछा कि क्या डोलीमें जायेंगे? तब मुनि भगवंतने फरमाया कि यदि जायेंगे तो पैदल ही जायेंगे अन्यथा न भी जावे किन्तु डोली का उपयोग नही करेंगे उस समय पूज्यश्री का उम्र लगभग ९२ वर्ष की थी। संघमें एकता हो ईस महान उद्देश्य से गुरुदेवने आयंबिलकी घोर तपश्चर्या प्रारंभ की और लगभग ३० वर्षों तक आयंबिल करते रहे । अपने जीवनकालमें लगभग ३००० उपवास एवं ११,५०० से अधिक आयंबिलकी तपश्चर्या की, जो कि अपने आप में एक रेकोर्ड हैं। लोगो का ऐसा भी विश्वास था कि जो वर्धमान तपकी लम्बी ओली न सकते हो वह पूज्यश्री से वासक्षेप प्राप्त कर सहजतासे आयंबिलकी ओली कर सकते हैं। जहाँ तक मुजे ज्ञात है ऐसा छ'री पालित यात्री संघ पूज्यश्री की ही निश्रामें निकले होंगे जिसमें सभी यात्रियों को आयंबिल की तपश्चर्या करना अनिवार्य हो । ऐसे ही संघका दर्शन करने का सुअवसर मुजे जूनागढमें प्राप्त हुआ । पूज्यश्री की निश्रामें जो तीर्थमाला के महोत्सव का जो कार्यक्रम हुआ वह जिस तरहसे शालिनता, शिष्टता एवं क्रमानुसार हुआ वह समय पर स्मृतिमें आता रहता है। ऐसा कार्यक्रम अन्यत्र प्राय: देखने में नही आता है। सहसावन के प्रति पूज्यश्री का पूर्ण समर्पण भाव था । अतः सहसावन तीर्थका संपूर्ण जीर्णोद्धार अपनी स्वयंकी जिम्मेदारीसे पूर्ण किया । और अंत समयभी नश्वर देह सहसावन तीर्थ को ही समर्पित कर दिया। ऐसे दृढसंकल्पी, जिनाज्ञापालक, घोरतपस्वी के चरणों में सहना वंदना.... वंदना.... www.ainelibrary.org ANS
SR No.012070
Book TitleVismi Sadini Viral Vibhuti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherSahasavan Kalyanakbhumi Tirthoddhar Samiti Junagadh
Publication Year2009
Total Pages246
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy