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श्रीमद् विजयराजेन्द्रस्-िस्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन जैन ग्रन्थों, रास आदि बड़े २ ग्रन्थों की संख्या सैकड़ों हैं । दोहे और डिंगल-गीत हजारों की संख्या में मिलते हैं, उसका स्थान जैन विद्वान् के स्तवन, सज्झाय, गीत, भास, पद आदि लघु वृत्तियें ले लेती हैं, जिनकी संख्या हजारों पर हैं।
(३) कविओं की संख्या और उनके रचित साहित्य के परिमाण से तुलना करने पर भी जैन साहित्य का पलड़ा बहुत भारी नजर आता है । जैनतर राजस्थानी साहित्य निर्माता में दोहों व गीतनिर्माता को छोड़ देने पर बड़े २ स्वतन्त्र ग्रंथनिर्माता कवि थोड़े से रह जाते हैं । और उनमें से भी किसी कविने उल्लेखनीय ५-४ बड़े २ और छोटे-बड़े और २०-३० रचनाओं से अधिक नहीं लिखा । राजस्थानी भाषा का सब से बड़ा ग्रंथ 'वंश भास्कर' है । जबकि जैन कवियों में ऐसे बहुत से कवि हो गये हैं जिन्होंने बड़े-बड़े रास ही काफी संख्या में लिखे हैं। यहां कुछ प्रधान कवियों का ही निर्देश किया जा रहा है।
(१) कविवर समयसुन्दर-आप राजस्थान के महाकवि हैं । प्राकृत, संस्कृत भाषा में अनेकों रचनाएं लिखने के साथ २ राजस्थानी में भी प्रचुर रचनाएं निर्माण की हैं। फुटकर स्तवन, सज्झाय, गीत आदि की संख्या तो ३०० के लगभग प्राप्त हैं । वैसे सीताराम चौपाई राजस्थानी का जैन-रामायण है । यह ग्रन्थ ३७०० श्लोकप्रमाण है। इसके अतिरिक्त साम्ब प्रद्युम्न चौपाई, चार प्रत्येक बुधरास, लीलावतीरास, नलदमयंतीरास, प्रियमेलकरास, पुण्यसार चौपाई, वरकलचीरीरास, शत्रुजयरास, वस्तुपालरास, थावच्चा चौपाई, क्षुल्लक कुमार. प्रबंध, चंपकवेष्ठि चौपाई, गौतमपृच्छा चौपाई, धनदत्त चौपाई, साधुवंदना, पुंजाऋषिरास, द्रौपदी चौपाई, केशीपबंध, दानादि चौढालिया एवम् क्षमाछतीसी, कर्मछतीसी, पुण्यछतीसी, दुष्कालवर्णनछतीसी, सवैयाछतीसी, आलोयणाछतीसी आदि २ राजस्थानी में बहुत से ग्रन्थ हैं।
(२) जिनहर्ष-इनका दीक्षापूर्व नाम जसराज था। यह राजस्थानी के बड़े भारी कवि हैं । इन्होंने पूर्ववर्ती जीवन में राजस्थानी भाषा में और पीछे से पाटन चले जाने पर गुजराती मिश्रित भाषा में ५० के करीब रास एवं सैकड़ों स्तवन आदि फुटकर रचनाएं की हैं । इनमें से कई रास तो बड़े २ काव्य हैं। आपकी समग्र रचनाओं का परिमाण एक लाख लोक के होगा।
(३) वेगड़ जिनसमुद्रसूरि-इन्होंने भी राजस्थानी में बहुत से रास, स्तवन आदि बनाए हैं। जिनका परिमाण ५०-६० हजार श्लोक के करीब होगा। कई ग्रन्थ अपूर्ण मिले हैं।
(४) तेरापंथी जीतमलजी-इनका भगवती सूत्र की दालें यह एक ही ग्रंथ ६० हजार लोक परिमाण है जो राजस्थानी का सबसे बड़ा ग्रन्थ है। आपकी अन्य रचनाओं को मिलाने से परिमाण लाख श्लोक से अधिक का ही होगा।