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________________ भीमद् विजयराजेन्द्ररि-स्मारक ग्रंथ हिन्दी जैन इसमें अल्लु और गल्लु ( अर्जुन और गोशाल ) नाम के दो प्राकृत छन्दकारों का उल्लेख मिलता है। इसकी उक गच्छाचार्य चन्द्रकीर्ति (सं. १६१३) ने संस्कृत में टीका लिखी है।' राजमल्ल पाण्डे:-इनका रचित संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी का मिश्रणात्मक एक निराला छन्दोग्रन्थ है जिसका 'छन्दशास्त्र' नाम दिया गया है। ये नागौर देश के नृप भारमल्ल के आश्रित थे जो कि बादशाह अकबर के समकालीन थे। अत एव इनके ग्रन्थों में अकवर कालीन अनेकों ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है । इनके रचित पञ्चाध्यायी, लाटीसंहिता, जम्बूस्वामिचरित, अध्यात्मकमलमार्तण्ड चार महत्त्वपूर्ण प्रन्थ मिलते हैं। उपर्युक्त विवेचित आचार्यों के ग्रन्थों के अतिरिक्त जैन विद्वानोंने अनेक जैनेतर छन्दशास्त्रों पर टीकाएं लिखी हैं। कालिदास के श्रुतबोध पर हर्षकीर्ति, हंसराज, और कान्तिविजय गणि की टीकाएं प्राप्त हैं तथा केदारभट्ट के वृत्तरत्नाकर पर सोमचन्द्रगणि, क्षेमहंसगणि, समयसुन्दर उपाध्याय, आसड और मेरुसुन्दर की टीकाएं उपलब्ध हुई हैं। इस तरह जैन विद्वानोंने भारतीय छन्दःशास्त्र की सर्वाङ्गीण उन्नति की है। इन विद्वानों के छन्द अन्थों का तुलनात्मक अध्ययन करने से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि छन्दों के क्षेत्र में संस्कृत ने प्राकृत भाषाओं को उतना प्रभावित नहीं किया जितना कि वह उनसे प्रभावित हुई है, तथा प्राकृत भाषायें संस्कृत के आधार पर समृद्ध न होकर वैदिक काल से ही बहुत कुछ स्वतन्त्र रूप से अपने विकास पथ पर बढ़ती रही हैं, उनके छन्दशास्त्र का विकास इस बात का साक्षी है। १. जिनरत्नकोश भा. १, पृ. १२७. २. जैन सिद्धान्तभास्कर भा. २०, कि. २. पृष्ठ ३३. ३. जिनरत्नकोश भाग १. पृष्ठ ३६४, और ३९८. प्राकृत भाषा का अजितशांति स्तोत्र छंदों के वैविध्य के लिए उल्लेखनीय है। हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में जैन विद्वानों के कई छंदप्रन्थ उपलब्ध हैं । संस्कृत-प्राकृत के छंदों पर कई ऊंच ग्रंथ भी प्राप्त है। (संपादक-अगरचंदजी नाहटा.)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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