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________________ ६५८ भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रय हिन्दी जैन हिन्दी में धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त जैन विद्वानों द्वारा लिखा हिन्दी साहित्यपुरातन काव्य, चरित काव्य, प्रबन्ध काव्य, गीति काव्य, रासा साहित्य, पुराण एवं कथा साहित्य, अध्यात्म साहित्य एवं प्रकीर्णक साहित्य आदि श्रेणियों में बांटा जा सकता है । जिससे उनकी साहित्य-सेवा का कुछ अनुमान लगाया जा सके । पुरातन काव्य-अपभ्रंश काव्यों को पुरातन काव्यों की श्रेणी में रखा जा सकता है। अपभ्रंश भाषा में जैनों की अपार सम्पत्ति है जो अन्यत्र नहीं मिल सकती। स्वयम्भू का पउमचरिउ तथा रिट्ठणेमिचरिउ ( ८ वीं शताब्दी ), पुष्पदन्तकृत महापुराण (११ वीं शताब्दी) धवलकृत हरिवंशपुराण, वीरकृत जम्बूसामीचरिउ (१०७०) नयणन्दिकृत सुदंसणचरिउ ( सं. ११४० ) आदि रचनाएँ अपभ्रंश के उच्च कोटि के महाकाव्य हैं । भाषाविज्ञान, रस, अलंकार, कथा एवं काव्यसौन्दर्य आदि सभी दृष्टियों से ये रचनाऐं महाकाव्यों की श्रेणी में रखी जा सकती हैं। स्वयं वीर कविने तो अपने काव्य को वीर और शृंगार रसात्मक लिखा है । स्वयंस्कृत पउमचरिय को जिसके दो भाग अभी प्रकाशित हुये हैं उन्हें पढ़कर महाकवि के अगाध ज्ञान एवं भाषा पर पूर्ण प्रभुत्व का पता लगाया जा सकता है। पुष्पदन्त का महापुराण एवं धवल का हरिवंशपुराण अपभ्रंश की विशाल रचनायें हैं जिनके गूढ अध्ययन के पश्चात् अपभ्रंश भाषा की समृद्धि का पता चलता है। ये ऐसी अमर कृतियां हैं जो किसी भी काल में अपने महत्व के कारण चमकती रहेंगी। परवर्ती हिन्दी साहित्य के विकास में इन रचनाओंने महत्वपूर्ण योग दिया है जिसको किसी भी दृष्टि से ओझल नहीं किया जा सकता। सूरदास, तुलसीदास, जायसी, केशव आदि महाकवि इन रचनाओं से काफी उपकृत हैं, क्यों कि उन्होंने अपभ्रंश काव्यों की शैली को अपने काव्यों में काफी विकसित किया है। चरित काव्य अथवा प्रबन्ध काव्य-जैन विद्वानोंने हिन्दी में सैकड़ों की संख्या में चरित-काव्यों की रचना की है । इन चरित काव्यों में किसी न किसी महापुरुष के जीवन का वर्णन किया हुआ होता है । चरित काव्यों का उद्देश्य श्रेष्ठ पुरुषों के जीवन पाठकों के सामने रखना है जिस से वे भी अपने जीवन को सुधार सकें। जैन विद्वानों की चाहे हम इसे विशेषता कह सकें, चाहे काव्यरचना की शैली; उन्होंने जो भी रचना की है, उसका उद्देश्य अपना काव्यचमत्कार प्रकट करना न हो कर पाठकों के कल्याण की ओर विशेष ध्यान रखना है । इस कारण कितनी ही रचनाएँ हिन्दी की उच्च रचनाएँ होने पर भी महाकाव्य की उस परिभाषा में नहीं आतीं जिस परिभाषा में विद्वानोंने महा काव्य को तोलना चाहा है । लेकिन इसी से इन चरित काव्यों का महत्त्व कम नहीं हो जाता । महाकवि भूधर का पार्श्वपुराण ( १७८९), परिमल्ल का श्रीपाल चरित्र, नथमल विलाला का नागकुमार चरित्र
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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