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________________ ६१४ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ ललितकला और जिनालय और लगभग पच्चीस सहस्र से उपर जिनप्रतिमायें हैं। एक ही पर्वत पर इतने मंदिर और इतने बिंब और वे भी अति दर्शनीय, वैभवपूर्ण, शिल्प की दृष्टि से महत्वशाली और स्थापत्य की दृष्टि से उत्तम कोटि के संभवतः दुनिया के किसी भी भूभाग के धर्म-क्षेत्र में तो उपलब्ध्य नहीं हैं । गिरनार पर्वतस्थ जैन तीर्थ में भी छोटे-बड़े सैंकड़ों मंदिर और सहस्रों प्रतिमायें हैं । सम्राट् कुमारपाल, महामंत्री वस्तुपाल - तेजपाल और संग्रामसोनी की ट्रंक शिल्प की दृष्टि से अत्यन्त ही दर्शनीय और वर्णनीय हैं । अर्बुदाचलगिरिस्थ देउलवाड़ा ग्राम में विनिर्मित दण्डनायक विमल का आदिनाथजिनालय, महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल का लूणवसहि नाम का नेमिनाथ - जिनालय, भीमाशाह की पिचर सहि आदि अद्भुत एवं बेजोड शिल्प- नमूने हैं; जिन पर लिखते ही चले जाओ, जिन को देखते ही रहो। हम थक जायेंगे; परन्तु सौन्दर्य और विषयरूप से वे कभी समाप्त नहीं होंगे। इसी अर्बुदगिरि पर अचलगढ़ में जो सहसाद्वारा विनिर्मित आदिनाथ - जिनालय है उसमें पंचधातु की १४ जिनप्रतिमाओं का बजन लगभग १४४४ मण होना कहा जाता है। वे प्रतिमायें मूर्तिकला की दृष्टि से अमूल्य नमूने हैं और भारत मूर्तिकला के ज्वलन्त उदाहरण हैं । हमीरपुर तीर्थ और कुम्भारिया तीर्थस्थ पांच जिनालयों के शिल्प अर्बुदस्थ जिनालयों के शिल्पकाम के समान ही बहुमूल्य और उत्तम कोटि का है । श्री राणकपुर तीर्थ - श्रीधरणविहार चतुर्मुखा - आदिनाथ जिनालय अपने १४४४ स्तंभों के लिये और स्थापत्य की दृष्टि से दुनियाभर में वह अपने रूपसे अपने में ही एक है । लोद्रवा - जैसलमेर - लोद्रवा का श्री पार्श्वनाथ मंदिर एवं जैसलमेर का श्री पार्श्वनाथ मंदिर शिल्प और स्थापत्य में कितना आकर्षक स्थान रखते हैं, यह किस शिल्पवेत्ता से अज्ञात है ? जैसलमेर की पटवा हवेली का शिल्प काम देख कर कौन मुग्ध नहीं होता है ! ग्वालियर की प्रतिमायें और दक्षिण भारत में गोलबेलकरस्थ बाहुबली - प्रतिमा अपनी ऊंचाई और विशालकायपन के लिये समस्त भारतभर में ही नहीं, की वस्तुएं हैं। भारत के शिल्प के ज्वलन्त नमूनों में ये जैन गये एक अजब मूर्खता की बात है ।* संसार में अद्भुत और आश्चर्य मंदिर क्यों नहीं स्वीकार किये * अर्बुद, राणकपुर, कुंभारिया, अचलगढ़, हमीरगढ़ और गिरनार तीर्थ के कलात्मक मंदिरों का विस्तृत परिचय मेरे लिखे हुये प्राग्वाट - इतिहास में देखिये जो वि. सं. २००७ में प्राग्वाट - इतिहास प्रकाशक समिति, स्टे' राणी द्वारा कलासंबंधी चित्रों के साथ प्रकाशित हुआ है ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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