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________________ ललितफला और तीर्थ-मंदिर व्या.वा.श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी ललितकला और तीर्थ-मंदिर कोरटाजी तीर्थ का प्राचीन इतिहास प्रदेश मारवाड़ में जिस प्रकार ओसियां, आबू, कुंभारिया, राणकपुर और जैसलमेर आदि पवित्र और प्राचीन तीर्थ माने जाते हैं, उसी प्रकार कोरंटक ( कोरटाजी ) तीर्थ भी प्राचीनता की दृष्टि से कम प्रसिद्ध नहीं है । यह पवित्र और पूजनीय स्थान जोधपुर रियासत के बाली परगने में एरनपुरा स्टेशन से १३ माइल पश्चिम में है । यह किसी समय बड़ा आबाद नगर था। वर्तमान में यहाँ सभी जातियों की घर-संख्या ४०८ और जन-संख्या लगभग १७५० है। इन में वीसा औसवाल जैनों के ६७ घर हैं जिन में इस समय पुरुष १२२ और स्त्रियां ११३ हैं । इस समय यह एक छोटे ग्राम के रूप में देख पड़ता है । इससे लगती हुई एक छोटी, परन्तु बडी विकट पहाड़ी है । पहाड़ी के ऊपर अनन्तराम सांकलाने अपने शासनकाल में एक सुदृढ दुर्ग बनवाया था जो धोलागढ के नाम से प्रसिद्ध था और अब भी इसी नाम से पहिचाना जाता है। इस समय यह दुर्ग नष्टप्राय है । दुर्ग के मध्य भाग में पहाड़ी की चोटी पर ' वरवेरजी' नामक माता का स्थान और उसीके पास एक छोटी गुफा है । गुफा के भीतरी कक्ष में किसी तपस्वी की धूनी मालूम पड़ती है । इस समय गुफा में न कोई रहता है और न कोई आताजाता है। कोरटाजी के चारों तरफ के खंडेहर, पुराने जैन मन्दिर, आदि के देखने से प्राचीन काल में यह कोई बड़ा भारी नगर होगा ऐसा सहज ही अनुमान हो सकता है। इसका पश्चिम-दक्षिण भाग झारोली गांव के पहाड़ से लगा हुआ है। (७४)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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