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________________ और उसका प्रसार महावीर स्वामी का मुक्ति-व -काल-निर्णय । ५८३ उपरोक्त कारणों से न तो चन्द्रगुप्त के शासनारोहण की हेमचन्द्र तथा भद्रेश्वर द्वारा दी गई परम्परा ( बुद्ध के देहावसान के १५५ वर्ष बाद ) और न दूसरे जैन ग्रन्थों में पालक के साठ वर्षे जोड़कर दिया गया समय ( बुद्ध के २१५ वर्ष बाद ) ही मान्य हो सकता है । ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त महावीर के निर्वाण से १६५ वर्ष उपरान्त सिंहासनारूढ़ हुए और अनवधानता वश किसी बाद के इतिहास लेखक ने यह समय १५५ वर्ष लिख दिया । सम्भव है यह गणना उस काल से की गई हो जब गद्दी पर बैठने से पूर्व ( ई० पू० ३२१ ) चाणक्य के निर्देशन में चन्द्रगुप्त ने नन्द राज्य की सीमा पर विद्रोह किया और उसे जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य देखना पड़ा । जो भी हो, यदि बौद्ध तिथिक्रम के अनुसार प्रथम मौर्य सम्राट् बुद्ध के निर्वाण के १६२ वर्ष बाद गद्दी पर आ तो महावीर एवं उनके समकालीन बुद्ध की मृत्यु में तीन वर्षों का अन्तर ऐतिहासिक ष्ट से अस्वीकार करने योग्य बात नहीं है । विल्हेल्म गाइगर, जे० एफ० फ्लीट तथा डी. एम. दे जेड. विक्रमसिंह ने मगध और लंका में बौद्ध धर्म के छठीं शताब्दी तक के इतिहास से सम्बन्धित समस्त तिथिक्रम सम्बन्धी सामग्री के आधार पर ई० पू० ४८३ को बुद्ध का निर्वाण वर्ष स्थिर किया है Mahavamsa, Geiger, Intr., pp. xxii ff., P. T. S. Trans. Series; Fleet, J. R. A. S., 1906, pp. 984-6; 1909, pp. 1 ff., pp. 323 ff; Wikremsinghe, Epig. Zeyl, iii, pp. 4 ff ) । इस सम्बन्ध में किए गए नए अनुसन्धान यह प्रकाशित करते हैं कि लंका में पन्द्रहवीं शताब्दी अन्त तक बुद्ध वर्ष का आरम्भ ई० पू० ४८३ से ही माना जाता था, किन्तु जब पंचांग में सुधार हुआ तो बुद्ध का निर्वाण वर्ष ई० पू० ५४४ माना जाने लगा John M. Senavaratne, J. R. A. S., Ceylon Br., xxiii, No. 67, pp. 147 ff.) । फ्लीट के मतानुसार बुद्ध का शरीरान्त १३ अक्टूबर ४८३ ई० पू० को हुआ था (J. R. A. S. 1909, p 22 ) । परन्तु इस लेख के लेखक के विचार से यह घटना रविवार, २६ अप्रैल, ई० पू० ४८३ की है ( D. R. Bhandarkar Vol. pp. 329-30) | ताकाकुसू यह सूचित करते हैं कि कैन्टन में ४८९ ई० तक रक्खे हुए ' बिन्दु अभिलेखों में ९७५ विन्दु हैं । अतः बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ४८६ (४८६+४८९ = ९७५ ) में हुआ था (J. RAS,. 1905, p. 51 ) । परन्तु यदि अभिलेखों को रखने में भोंडे ढंग और उनके लम्बे समय को ध्यान में रक्खा जाय तो तीन विन्दुओं का अधिक होना अप्रत्याशित या आशातीत नहीं है । , * · बुद्ध ' के स्थान पर ' महावीर ' चाहिये । संपा० दौलतसिंह लोढ़ा.
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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