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________________ ५५१ और उसका प्रसार राजस्थान में जेमधर्म का ऐतिहासिक महत्त्व । प्रभावित किया । उसको गर्धभिल पर आक्रमण करने को उकसाया। बहुत संभव है कि यह शक राजा Maues ( मेउस ) हो । इसका यह समय तक्षिला ताम्रपत्र ( Taxila Copper Plate ) तथा सिक्कों के अध्ययन से भी ज्ञात होता है। उसने गर्धभिल को हराया तथा उज्जैन पर अपना अधिकार किया। उसने अनेक प्रकार के सिक्के चलाये। एक सिक्के पर एक तरफ बैठी हुई प्रतिमा है तथा दूसरी ओर नृत्य करता हाथी आता हुआ प्रतीत होता है। टान ( Tarn ) के अनुसार यह प्रतिमा महात्मा बुद्ध की है, किन्तु यह विचार ठीक प्रतीत नहीं होता है। यह बैठी हुई प्रतिमा तीर्थकर की हो सकती है। और यह नाचता हुआ हाथी तीर्थकर पर जल छिड़कने के लिए आता हुआ ज्ञात होता है । यह संभव हो सकता है, क्यों कि कालकाचार्य के प्रभाव से मेउस ( Maues ) ने जैनधर्म स्वीकार कर लिया हो और उस प्रकार का नया सिक्का निकाला हो । __ उज्जैन में शकों का राज्य केवल १७ वर्ष तक ही रहा। इसके पश्चात् गर्घमिल के पुत्र विक्रमादित्य ने अपने पिता के खोये हुए राज्य को फिर से प्राप्त किया। सिक्कों तथा शिलालेखों से पता चलता है कि मालव जनतंत्र इस समय दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में था । इस जनतंत्र का नायक विक्रमादित्य था। विक्रमादित्य के समय पश्चिमी भारत में जैनधर्म जीवित धर्म था । जैन परंपरा के अनुसार विक्रमादित्य स्वयं भी जैनी हो गया था। ____ पहली शताब्दी में हर्षपुर एक समृद्धिशाली शहर समझा जाता था। यह अजमेर तथा पुष्कर के मध्य में स्थित था। भूमक सिक्के भी यहां पर मिले हैं। जैन साहित्य के अनुसार यहां पर ३०० जैन मंदिर थे । इस समय सुभरपाल नाम का राजा राज्य करता था" किंतु इतिहास से इस राजा का पता नहीं चलता है। यह वर्णन कुछ बढ़ा-चढ़ा कर किया गया है, किंतु जैनधर्म का इस स्थान से संबन्ध होने में कोई संदेह नहीं है। हर्षपुर गच्छ भी इसी स्थान से प्रसिद्ध हुआ है । इस गच्छ के दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी के शिलालेख भी मिलते हैं। समन्तभद्र के प्रयत्न से भी जैनधर्म का दूसरी शताब्दी में अधिक प्रचार हुआ। श्रवण बेलगोला के शिलालेख के अनुसार वह धर्मप्रचार करने के लिए अनेक स्थानों पर ९ Catalogue of Indian coins by Cardner, PI. XVII, No 5. १० भ. ASIR. Vol VIP. 160-183. Bit. Manelsa sacrificial Piller inscription of the 3 rd century A. D. ( Udaipur State ) ११ Ancient India by Tribhuvanlal Shah Vol. III, PP. 381-382.
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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