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________________ और उसका प्रसार जैनधर्म की ऐतिहासिक खोज । आवर्त (घेरा ) डाल रहे थे । यद्यपि भारत को पहले पुराणों में ब्रह्मर्षि प्रदेश, फिर आर्यावर्त और फिर सिन्धु की घाटी पर बसे होने के कारण हिन्दु और हिन्दुस्तान कहना प्रारम्भ हुवा है, परन्तु इस देश का प्राचीनतम नाम भारतवर्ष है। जैनागम इसे जम्बूद्वीप के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भारतक्षेत्र के नाम से उल्लेख करते हैं। हिन्दु शब्द प्रादेशिक महत्व रखता है, आर्यावर्त जातिगत अधिकार सत्ता का अवबोधक है और भारत शब्द भारती प्रजा का ही बोध देता है। आर्य-सभ्यता उत्तर से दक्षिण की ओर बढी है और उसे अन्यान्य देश की प्राचीन परम्पराओं तथा पुरातन जातियों से संघर्ष करना पड़ा है । जिन में व्रात्य सम्प्रदाय मुख्य है । क्यों कि वेद में व्रत को माननेवाले व्रात्यों का तथा यज्ञ के माननेवाले याज्ञिकों का ही अधिक. तर वर्णन किया गया है । यज्ञ से विमुख रहने वाले असुरों और यज्ञप्रिय देवों के संग्राम की यही पृष्ठभूमि है । याज्ञिक यज्ञ में पशुओं तक का बलिदान करते और अहिंसादि व्रतों को माननेवाले व्रात्य ऐसे हिंसक यज्ञ को होने से रोकते । दोनों में संघर्ष छिड़ता, युद्ध होता । यज्ञविरोधी असुरों के लिये, व्रात्यों के नाश करने के लिये मन्त्र पढे जाते, प्रार्थनायें की जातीं। इन्हीं विरोधी विचारों ने भारतीय सन्तति को दो भागों में विभाजित किया है। आर्यों का आगमन यद्यपि इस विषय में इतिहास अंधेरे में है । कोई कहता है कि भारत चतुःसंस्थानस्थित था और किसी समय भारत का विस्तार अफ्रिका से आस्ट्रेलिया तक फैला हुवा था । समुद्र के परिवर्तन और भूमि विस्फोट ने भारत का रंगरूप बदल दिया है । मध्य एशिया की जातियों में परस्पर चंक्रमण प्रारम्भ हुवा जिसके परिणामस्वरूप आर्य जाति का भारत आगमन अथवा सिन्धु घाटी से दक्षिण की ओर प्लवन प्रारम्भ हुवा । जिससे यह तो निश्चित होता है कि परस्पर विरुद्ध विचार रखनेवाली दो जातियों में सम्पर्क एवं संघर्ष हुवा हो । यह लाखों वर्ष पुरानी कहानी है, हमारे देश में अनेक प्रकार के लोग रहे हैं। आर्य, द्रविड़, सैन्धव, शबर, पुलिन्द, पुल्कश, किरात और मंगोल अष्ट महाजातियों एवं पच्चीस उपजातियों का उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है। भारत के लोग अनेक भूभागों में निवास करते रहे हैं। हिमालय की शृङ्खलाओं में, ब्रह्मसिन्धु के मैदानों में, दक्षिण भारत के पठारों में और गोदावरी तथा कावेरी की भूमियों में निवास करते आये हैं। समूचे भारत के विशाल भूप्रदेशों पर अनेक पन्थों, सम्प्रदायों, मान्यताओं और कबीलों का राज्य रहा है। उनके अनेक प्रकार के विचार रहे हैं तो भी सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भारत में दो ही विचारधारा मुख्यरूप से विद्यमान रही हैं, एक व्रतमूलक और दूसरी यज्ञमूलक ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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