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________________ ४८९ और जैनाचार्य आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी की ज्ञानोपासना। प्रन्थ निर्माण के साथ साथ आपने बहुत से ग्रन्थों की नकलें भी की। ऐसी कई प्रतियाँ आहोर के राजेन्द्रसूरि जैनागम ज्ञानभण्डार में हैं । आपने प्राचीन प्रतियों के संरक्षण का भी बड़ा प्रयत्न किया और बहुत से ग्रन्थों की नकलें करवा कर भी अपने भण्डारों मे रखीं। आप के संस्थापित ७ भण्डार मालवे में और ५ भण्डार मारवाड़ में होने की सूचना पूज्य यतीन्द्रसूरिजी से मिली है। मालवे में १ कुक्षी, २ राजगढ़, ३ आलि. राजपुर, ४ बड़नगर, ५ रतलाम, ६ जावरा और ७ खाचरोद और मारवाड़ में ८ आहोर, ९ जालोर, १० बागरा, ११ सियाणा तथा १२ शीवगंज मे हैं। इनमें से ११ भण्डार व उनके सूचीपत्र तो मेरे अवलोकन में नहीं आये, पर आहोर का भण्डार कई वर्ष पहले मैंने स्वयं वहाँ जाकर देखा था और उसका सूचि-पत्र भी फिर मँगवा कर देखा है । यह ज्ञान-भण्डार बहुत ही महत्वपूर्ण है । करीब २५० बण्डलों में ३५०० हस्तलिखित प्रतियाँ और करीब ४००० मुद्रित पुस्तकें हैं । हस्तलिखित प्रतियों में कई अन्यत्र अप्राप्त ग्रन्थ भी हैं । कई वर्षों पूर्व मैंने पल्लीवाल गच्छ पट्टावली व हुंडिका नामक एक बृहद् ग्रन्थ मंगवा कर नकल करवाई थी। इनकी प्रतियाँ अन्यत्र नहीं मिलती। हुडिका खरतर गच्छ के उपाध्याय गुणविनय द्वारा संग्रहीत करीब १२००० श्लोकों का एक बड़ा संग्रह है। २८८ पत्रों में मूल और ८ पत्रों में उसकी सची (स्वयं गुणविनय उपाध्याय की लिखी) है। सं. १६५७ से रुणा में यह संप्रहग्रन्थ बनाया गया और इसका बीजक मेदनीतट (मेड़ता) में लिखा गया । अभी मैंने इस भण्डार की कुछ और भी प्रतियाँ मंगवाकर देखी । उनमें खर. तरगच्छीय जिनप्रभसूरि शाखा के राजहंसगणीरचित "जिनवचन रत्नकोश" नामक अलभ्य ग्रन्थ देखने में आया। सं. १५२५ में १८७५गाथावाला यह संग्रह ग्रन्थ ४३ विषयों की गाथाओं के संग्रहरूप है। इसका आदि अन्त, आदि कुछ विवरण नीचे दिया जा रहा है:आदि-सिरि वद्धमाण पाए, सुरासुर नमंसिए पणमि उण । जिण नयण रयणकोसं, पगरणमेयं भणिस्सामि ॥ १॥ एगारस अंगाई, बारउवंगाइ सपहनाया चत्तारि । मूल छयेय नंदि अणु उग पणयाला ॥ २॥ संसती निज्जुती भासो वसुदेवहिंडि संगहणी । विवहारकप्प चुन्नी, विर्सेस आवस्सयाईया ॥३॥ उवए समाल बहु पुष्पमाल, संदेह दोल आवलिए । पवयण सारुद्वारे सद्विसए पिंडविशुद्धीए ॥ ४॥
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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