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________________ और जैनाचार्य विमलार्य और उनका पउमचरियं । शती ई० में तो रोमन सम्राटों के साथ भारतीय नरेश राजदूतों का भी आदान-प्रदान करने लगे थे। लगभग उसी काल में स्वयं एक जैन श्रमणाचार्य भंडौच नगर से चल कर रोम पहुंचे थे और वहाँ उन्होंने समाधिमरण किया था। अतः इन कतिपय विदेशी शब्दप्रयोग के कारण विमलार्य की स्वप्रदत्ततिथि को अप्रमाण करने का कोई कारण नहीं है । विमलार्यने अपने गुरुओं का अवश्य ही 'नाइलकुलवंसणंदियर' तथा 'नाइलवंसविणयर' विशेषणों के साथ स्मरण किया है । ग्रंथ के अंतिम भाग में केवल एक एक बार ये दो पद मिलते हैं । नंदिसूत्रपट्टावली में नागार्जुनसूरि के शिष्य भूतदिन्न को भी 'नाइलकुलवंसनंदिकरे' लिखा है। इनका समय लगभग ३-४ थी शती ई० है। कल्पसूत्रथेरावलि के अनुसार वनस्वामी के शिष्य आर्यवज्रसेन से · अज्जनाइलीसाहा' (आर्यनाइली शाखा) निकली थी । डा. जैकोबी ने वनस्वामी की मृत्युतिथि वी. नि. सं.५७५ निर्धारित की है और उनके शिष्य वनसेन को लगभग वी. नि. सं. ५८०-६०० । इस आधार पर उन्होंने विमलार्य को वीर निर्वाण के सातवीं शती के उत्तरार्ध से उपरांत का विद्वान् अनुमान किया है। किंतु बी. एम. शाहने इस नाइली या नागिल शाखा की उत्पत्ति अज्जनाइल से सन् ९३ ई० में हुई बताई है और इस आधार पर विमलार्य का समय लगभग १४३ ई. निश्चित किया है। किंतु उपरोक्त दोनों पट्टावलियों के इन उल्लेखों के अतिरिक्त नाइली शाखाका और कोई इतिहास नहीं मिलता। विमलार्य और उनके गुरु विजय एवं राहू का इस शाखा से संबंधित होनेका भी कोई अन्य उल्लेख नहीं मिलता और न किसी थेरावलि या पट्टावली में ही उनका नाम मिलता है । कल्पसूत्र थेरावली के आधार पर भी नाइली शाखा की प्राचीनता वी. नि. सं. ५७५ अर्थात् सन् ४८ ई० तक पहुँचती है । जैकोबी द्वारा मान्य महावीर निर्वाण की तिथि के अनुसार वह सन् ९८ या १०८ ई० होती है । समयसूचक ये मतभेद महत्त्वपूर्ण हैं । इसके अतिरिक्त यह भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि विमलार्य का संबंध थेरावली में ही उल्लिखित शाखा से था और उसके पूर्व नाइल नामका कोई जैन मुनिवंश विद्यमान ही नहीं था। स्वयं प्रो. शाह के शब्दों से उनका इस विषय में संदेह ध्वनित होता है। २५. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृ १४. २६. पहावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृ. ८. २७. परिशिष्टपर्व, जैकोबी भूमिका, पृ. १९, २८. शाह, पउमचरियम्, भूमिका, पृ. ४ २९. वहो।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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