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________________ ४३६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ जिम, जैनागम समय जैन धर्म धर्म के प्रभाव में निर्मन्थों को इस 1 के कथानुसार पुण्ड्र और सुम्ह अर्थात् उत्तर और पश्चिमी बंगाल एक के केन्द्र थे । भगवान् महावीर के समय से पुण्ड्रा और सुम्ह जैन आगये थे । दिव्यावदान में लिखा है कि अशोकने पुण्ड्रवर्धन में बहुत से लिये मरवा दिया था कि उन्होंने बुद्ध की मूर्ति के प्रति भक्ति प्रदर्शित नहीं की थी । सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री हुयनेतसांगने पुण्ड्रवर्धन में बहुत से निर्मन्थों को देखा था । अतः पुण्ड्रवर्धन शताब्दियों तक जैनों का केन्द्र रहा है । अतः वही श्रुतकेवली भद्रबाहु का जन्म - प्रदेश हो सकता है । संक्षेप में जैन ग्रन्थों से भद्रबाहु के सम्बन्ध में इतनी ही जानकारी हमें प्राप्त हो सकी है । खोज करने से और भी बातें ज्ञात हो सकती हैं। भद्रबाहु के जीवन और काल का अन्वेषण जैन धर्म के इतिहास के लिये अत्युपयोगी प्रमाणित होगा । इस में सन्देह नहीं है । 1
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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