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________________ ४२५ और जैनाचार्य तीर्थङ्कर और उसकी विशेषतायें । अनुभव करते हैं। वे अजर, अमर, अक्षय, अनन्त, अनुपम, अद्भुत, लोकोत्तर सुख का अनुभव करते हैं । दुःख के अभाव में जैसे सुख मिलता और रात्रि के बीतने पर जैसे दिवस आता, वैसे ही वे आठों कर्मों के अभाव में आठ सद्गुण प्राप्त कर लेते हैं । *तीर्थकर जीवन-काल में जब विश्ववन्ध और जीवनमुक्त होता है तथा आदर्श और यथार्थ लिये रहता है, तब वह प्रत्येक मुमुक्षु को उपादेय और दर्शनीय होता है; क्यों कि तीर्थंकर के दर्शन उसे आत्म-तीर्थ के दर्शन कराने में सहायक होते हैं और उसको भी तीर्थकर होने के लिये उत्तेजित करते हैं। किन्तु वर्तमान काल में उनके प्रत्यक्ष दर्शन सुलभ नहीं, विदेह क्षेत्र में भले ही बीस तीर्थकरों के विद्यमान रहने का उल्लेख हो, परन्तु जब हम वहाँ जा ही नहीं सकते तो उनसे हमारा मूलभूत प्रयोजन भी सिद्ध नहीं होता । अतएव उनकी तदाकार मूर्तियों को मन्दिरों में स्थापित कर उनके दर्शन किये जाते हैं। तीर्थंकर की ध्यान-मग्न सौम्यमूर्ति के दर्शन से वह सुशान्ति उपलब्ध होती है जो आज के अणुबम, उद्जन बम के युग में मनुष्य के लिये अतीव आवश्यक है । दर्शन करके दर्शक अलभ्य आत्मतुष्टि पा जाता है और भक्तिमय गुणानुवाद का गायक बन जाता है । तीर्थंकर की प्रतिमा के दर्शन कर वह अपने आप को धन्य मानता है और मानवीय जीवन को सफल तथा सार्थक हुआ समझने लगता है। ____ आज लगभग ढाई हजार बरस बीतने को हैं, तब से इस पृथ्वी पर कोई तीर्थङ्कर नहीं हुआ और न जैनजनों के मत से इस से भी कई गुने काल में होने की सम्भावना ही है। यह जानते हुये भी अगणित मन्दिरों में अथवा धर्म-स्थानों में जो अगणित धार्मिक क्रियायें तीर्थंकर को लक्ष्य कर, आत्मिक उद्धार की भावना लेकर की जा रही हैं, उनके मूलभूत आधार में ही तीर्थकर का महत्व, जो अवर्णनीय है, अन्तर्हित है। तीर्थङ्कर चौवीस ___ जैनशास्त्रों में चौबीस तीर्थकर माने जाते हैं। तीर्थंकर कहो या श्रेष्ठ महापुरुष भी बात एक ही है । चौवीस तीर्थंकरों की भाँति हिन्दुओं में चौवीस अवतार, बौद्धों में चौवीस बुद्ध और जोरेस्ट्रीयनों [ Zorastrians ] में चौवीस अहूर [ Ahuras ] माने गये हैं । यहूदी धर्म में भी आलंकारिक भाषा में चौवीस महापुरुष माने गये हैं। जैनेतर स्रोतों द्वारा जैनधर्म के चौवीस तीर्थंकरों की मान्यता का समर्थन यह सूचित करता है कि जैन मान्यता सत्य पर * अट्ठवियकम्मवियलासीदीभूदाणिरजणा णिच्चा। अट्टगुणा किद किच्चा लोयग्गावासिणो सिद्धा॥ प्राकृत के सिवाय हिन्दी भाषा में यही आठ गुण इस प्रकार हैं:-समकित दर्शन ज्ञान, अगुरुलघू अवगाहना । सूक्ष्म बीरजवान निराबाध गुण सिद्ध के। ५४
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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