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________________ भीम विजयराजेन्द्ररि-स्मारक-ग्रंथ ६५-४६ सृष्टिकर्ता ईश्वर नहीं मुनिश्री कांतिविजयजी ६६-४७ भारतीय संस्कृति के आधार डॉ. मंगलदेव शास्त्री, बनारस ६७-४८ पूर्वेशिया में भारतीय संस्कृति आचार्य रघुवीर, नागपुर ३७७ ६८-४९ विशिष्ट योगविद्या मुनिश्री देवेन्द्रविजयजी ३८४ है जिन, जैनागम और जैनाचार्य 卐 ६९-५० जैनागमानाम्परिचयः (संस्कृत) मुनिश्री कल्याण विजयजी ४०२ ७०-५१ श्रीमतीर्थङ्कराः तद्वैशिष्टयञ्च (संस्कृत) , ४०६ ७१-५२ विश्व के उद्धारक मुनिश्री अभय सागरजी ७२-५३ तीर्थंकर और उसकी विशेषतायें श्री लक्ष्मीचंद जैन 'सरोज', रतलाम ४१६ ७३-५४ श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली श्री कैलाशचन्द्र शास्त्री ४२७ ७४-५५ विमलार्य और उनका पउमचरियं । श्री ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ ४३७ ७५-५६ यशपुर का ऐतिहासिक महत्व एवं श्री आर्यरक्षितसूरि श्री मदनलाल शास्त्री, मंदसौर ४५२ ७६-५७ मालवमनीषी श्री प्रभाचन्द्रसूर श्री सू० ना. व्यास, उज्जैन ४६० ७७-५८ वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि श्री रिषभदास रांका, पूना २ ४६२ ७८-५९ देवेन्द्रसूरिकृत नव्य कर्मग्रंथ डा. मोहनलाल महता ७९-६० लुकाशाह और उनके अनुयायी श्री भंवरलाल नाहटा ८०-६१ उपा० मेघविजयजी गुम्फिता अर्हद्गीता पं. रमणीकविजयजी ४७८ ८१-६२ आ. श्री राजेन्द्रसूरिजी की ज्ञानोपासना श्री अगरचंद नाहटा ८२-६३ युगपुरुष श्री राजेन्द्ररि मुनिश्री पुण्यविजयजी म. ४९२ ८३-६४ अपभ्रंश साहित्य का मूल्यांकन श्री देवेन्द्रकुमार एम. ए., अलमोड़ा ४९६ जैन धर्म की प्राचीनता और उसका प्रसार ॥ ८४-६५ प्राऐतिहासिक काल में जैन धर्म श्री कामताप्रसाद जैन ५०४ ८५-६६ जैन धर्म की ऐतिहासिक खोज मुनिश्री सुशीलकुमारजी ५०९ ८६-६७ जैन धर्म की प्राचीनता और उसकी विशेषतायें। श्री उदयलाल नागोरी, बीकानेर ५२९ ८७-६८ प्राचीन जैन साहित्य में मुद्रा संबंधी तथ्य श्री उमाकान्त पी. शाह, बड़ौदा ५३५ ८८-६९ राजपूताना में जैन धर्म डॉ. वासुदेव उपा० पटना ५४५ ८९-७० राजस्थान में जैन धर्म का ऐतिहासिक महत्व श्री कैलाश चन्द्र जैन, जयपुर ५४८ ४८६
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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