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________________ ३९६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ दर्शन और और रौद्रध्यान को भवभ्रमण का कारण और आर्त को तियंचगतिप्रद तथा रौद्रध्यान को नरकगति का देनेवाला भी कहा गया है । धर्मध्यान:- आर्तध्यान और रौद्रध्यान जिस प्रकार अप्रशस्त हैं, वैसे ही धर्मध्यान और शुक्लध्यान प्रशस्त एवं क्रमशः देवगति और निर्वाणप्राप्ति में सहायक हैं" । महाव्रतों का पालन करना, सूत्रों के अर्थों को जानना, बन्ध-मोक्ष तथा गमनागमन के हेतुओं का विचार करना, इन्द्रियों के २३ विषयों से पराङ्मुख होना, प्राणीमात्र पर दयाभाव रखना- धर्मध्यान है । अथवा आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान के चिन्तन में मन को एकाग्र बनाना - धर्मध्यान है । ध्यान सालम्बन और निरालम्बन है । तभी तो पहले साधक व्यक्ति को सालम्बन ध्यान में प्रवृति करनी होती है । जब वह सालम्बन ध्यान में प्रवीण हो जाता है, याने जब साधक धर्मध्यान से चित्त की एकाग्रता और निश्चलता सम्पादन करलेता है, तब शुक्ल ध्यान में उसका प्रवेश हो सकता है । इसी लिये योगमार्ग में पैठनेवाले मुमुक्षु जीवों को आत्मतत्व के मननार्थ धर्मध्यानगत वस्तुतत्त्व का चिन्तन कर मानसिक एकाग्रता एवं स्थिरता सम्पादन कर ही लेना चाहिये । ऐसा करने पर ही स्थूल से सूक्ष्म और सालम्बन से निरालम्बन में प्रवेश शीघ्र हो सकता है । इसी आशय से परमपूज्प शास्त्रकारोंने शुक्लध्यान से पहले धर्मध्यान का निरूपण किया है । चार भेद हैं: - आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और धर्मध्यान संस्थान विचय | ( १ ) आज्ञाविचय:- आज्ञा का अर्थ है परमज्ञानी, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी भगवान् श्री वीतराग का आदेश । विचय का अर्थ है विचारना, चिन्तन करना और सोचना याने अनेकान्त का ज्ञान करानेवाली निर्दोष नयभंग और प्रमाण से गहन जिनाज्ञा को सर्वथा सत्य मानकर उस में प्रतिपादित तत्वों का चिन्तन करना । श्री जिन - वीतरागप्ररूपित तत्वों का चिन्तन-मनन- अध्ययन करते समय यदि ज्ञानावरणीय कर्मोदय से तद् अर्थ समझ में नहीं आवे तो उसके लिये मन को शंकित नहीं २७ भवकारणमदृरुद्दईं । २८ अट्टेणतिरिक्खगतिं, रोद्दझाणेणगम्मत्ति नरयं । २९ धम्मेण देवलोयं, सिद्धिगतिं सुक्कज्झाणेण । ३० धम्मज्झाणे चउव्विद्दे चउप्पडोयारे पण्णत्ते तं जहा भाणाविजए, अवायविजए, विवागविजए, संठाणविजए ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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