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________________ संस्कृति भारतीय संस्कृति के आधार । समष्टि-दृष्टि न रखकर एकांगी दृष्टि से ही काम लेते रहे हैं । केवल बौद्धों आदि पर भारत के अधःपतन का दोष मढ़ना ऐसे ही लोगों का काम है । ऐतिहासिक गवेषणा में हमारी एकांगी दृष्टि का प्रधान कारण यह होता है कि हम प्रायः अपनी दृष्टि को संस्कृत साहित्य में ही परिमित कर देते हैं। पर संस्कृत साहित्य में कितनी अधिक एकांगिता है, इसका ज्वलन्त प्रमाण इसीसे मिल जाता है कि बौद्धकालीन उस इतिहास का भी, जिसको हम भारत का स्वर्ण-युग कह सकते हैं, संस्कृत साहित्य में प्रायः उल्लेख ही नहीं है । 'व्याकरण महाभाष्य' में पाणिनि के “येषां च विरोधः शाश्वतिकः" (२।४।९) (अर्थात् जिन में परस्पर शाश्वतिक विरोध होता है, उनके वाचक शब्दों का द्वन्द्व समास एक वचन में रहता है ) इस सूत्र का एक उदाहरण 'श्रमण-ब्राह्मणम् ' दिया है । इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि कम से कम ईसा से कई सौ वर्ष पूर्व से ही श्रमण (अर्थात् जैन, बौद्ध) और ब्राह्मणों में सर्प और नकुल जैसी शत्रुता रहने लगी थी। संस्कृत साहित्य की उपर्युक्त एकांगिता के मूल में ऐसे ही कारण हो सकते हैं । यही बात संस्कृतेतर साहित्यों के विषय में भी कही जा सकती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति के आधार के विषय में उपर्युक्त सांप्रदायिक तथा एकांगी दृष्टि के मुकाबले में आधुनिक विज्ञानमूलक ऐतिहासिक दृष्टि है । इसके अनुसार भारतीय संस्कृति को उसके उपर्युक्त अत्यन्त व्यापक अर्थ में लेकर, उसको स्वभावतः प्रगतिशील तथा समन्वयात्मक मानते हुए, वैदिक परम्परा के संस्कृत साहित्य के साथ बौद्ध-जैन साहित्य तथा सन्तों के साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन, मूक जनता के अनंकित विश्वास और आचारविचारों के परीक्षण और भाषा के साथ-साथ पुरातत्त्व-सम्बन्धी ऐतिहासिक तथा प्रागैतिहासिक साक्ष्य के अनुशीलन के द्वारा समष्टि दृष्टि से भारतीय संस्कृति के आधारों का अनुसन्धान किया जाता है। उपर्युक्त दोनों दृष्टियों में किस का कितना मूल्य है, यह कहने की बात नहीं है। स्पष्टतः उपर्युक्त वैज्ञानिक दृष्टि से ही हम भारतीय संस्कृति के उस समन्वयात्मक तथा प्रगतिशील स्वरूप को समझ सकते हैं, जिसको हम वर्तमान भारत के सामने रख सकते हैं और जिसमें भारत के विभिन्न संप्रदायों और वर्गों को ममत्व की भावना हो सकती है । हम इस लेख में इसी दृष्टि से संक्षेप में ही संस्कृति के आधारों की विवेचना करना चाहते हैं।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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