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________________ संस्कृति सृष्टिकर्ता ईश्वर नहीं। अर्थात् हे गौतम ! अपनी-अपनी कल्पना के मुताबिक लोग कहते हैं कि सृष्टि को ब्रह्मा, विष्णु, ईश्वर और देवताने बनाई । परंतु वास्तविक में यह बात नहीं है और न वे उस बात को जानते ही हैं । क्यों कि यह संसार अनादि अनन्त काल से चला आ रहा है । न तो इसका आदि है और न अन्त । ये काल के स्वभाव से न्यूनाधिक होता रहता है । संपूर्ण रूप से सृष्टि का नाश भी नहीं होता । थोड़ी देर के लिये समझ लीजिये कि ईश्वर सृष्टि का कर्ता है और ईश्वरने मनुष्ययोनि, देवयोनि, तिर्यश्चयोनि, पशु-पक्षीयोनि, नर्कयोनि आदि योनियाँ बनाई-सृष्टि की रचना की । तो फिर संसार में एक सुखी, एक दुःखी, एक राजा, एक रंक, एक बुद्धिमान और एक निरामूर्ख, एक देवलोक के सुख का भोका, एक दरिद्री, एक अच्छे-अच्छे मिष्टान्न एवं भिन्न-भिन्न प्रकार की रसवतियों का आस्वादन करता है और एक को मुट्ठीभर चने भी चबाने को नहीं मिलते । इसका क्या कारण !, ईश्वर में ऐसा भेद-भाव क्यों !, अर्थात् हम ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानते हैं तो विरोधाभास मालूम पडता है। ईश्वर तो संसार के सभी प्राणी को समान भाव से देखनेवाला है । इसलिये ईश्वर सृष्टि का कर्ता नहीं कहला सकता। कर्म को ही कर्ता मानना पडेगा। ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानना ईश्वर पर दोषारोपण करना है। जैनशास्त्रों में कहा गया है कि ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अन्तराय इन अष्ट कमों का जिन्होंने जड़मूल नाश कर दिया वे फिर संसार में जन्म धारण नहीं करते। उनको जन्म धारण करने योग्य कोई कर्म नहीं हैं और कारण भी नहीं हैं । कहा भी है कि: दग्धे बीजे यथात्यन्तं, प्रादुर्भवति नाङ्करः। कर्मबीजे तथा दग्धे, न रोहति मवाङ्करः॥ __ अर्थात् बीज के जल जाने के बाद अंकुर पैदा नहीं हो सकता । उसी प्रकार कर्मरूप बीज जल जाने के पश्चात् भवरूप अंकुर पैदा नहीं होता यानी जन्ममरण नहीं करना पड़ता। इस बात की पुष्टि करते हुए गीता में भी कहा है कि: न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति विभुः। न कर्मफलसंयोग, स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ नादत्ते कस्यचित्पापं, न चैवं सुकृतं प्रभुः। अज्ञानेनावृतं ज्ञानं, तेन मुवन्ति जन्तवः ॥
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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