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________________ ३२८ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ दर्शन और (२) अहिंसामय ऋषिकुल जीवन____ महाभारत, रामायण, रघुवंश, शकुन्तला, कादम्बरी आदि साहित्यिक ग्रन्थों में वाल्मिकि, अगस्त्य, भृगु, कण्व, जाबालि आदि माननीय ऋषि-मुनियों के आश्रमों का जो वर्णन दिया हुआ है उससे भली-भांति विदित है कि ब्राह्मण ऋषियों के आश्रमों का वातावरण दया, सरलता, स्वच्छता से कितना सुन्दर था, विनय, भक्ति और सेवा से कितना सजीव था, उनका लोक मानवलोक तक ही सीमित न था । वह पशु-पक्षीलोक तथा वनस्पतिलोक तक व्याप्त था। वह आकाश से धरती तक और पूर्व क्षितिज से पश्चिम क्षितिज तक फैला हुआ था । ऋतुचक्र का नृत्य, उषा की अरुण मुस्कान, सूर्य की तेजस्वी चर्या, संध्या की शान्त निस्तब्धता, तारों भरे उत्तुंग गगन के गीत उनके आमोद-प्रमोद के साधन थे। सब ओर लतावेष्टित वृक्षों की पंक्ति, फलों की वाटिकायें, अलियों का गुंजार, पक्षियों के नाद, मोरों के नाच, मृगों की अठखेलियां, कमलों से भरपूर जलाशय उनकी नाट्यशाला के सजीव दृश्य थे। खाने के लिये प्राकृतिक फलफूल, पीने के लिये स्वच्छ नदीजल, पहिनने के लिये वल्कल, रहने के लिये तृणकुटी उन की धनसम्पदा थी । (३) स्मृति ग्रन्थों में अहिंसामय विधान इसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप स्मृति ग्रन्थों में भी आहार और व्यवसाय सम्बन्धी अहिंसा पर बहुत जोर दिया गया है। स्कन्दपुराण काशीखण्ड पूर्वार्ध अ.४० तथा मनुस्मृति ११. ५४-९६ में कहा गया है कि मांस, मद्य, सुरा और आसव ग्रहण न करना चाहिये । कीड़े, मकोड़े, पक्षियों की हत्या करना अथवा मधुमिश्रित भोजन, निन्दित अन्न का भोजन, लहसुन, प्याज आदि अभक्ष्य चीजों का सेवन करना भी पाप है। खानों पर अधिकार जमाकर उनको खोदना, बड़े भारो यन्त्रों का चलाना, औषधियों का उखाड़ना, ईंधन के लिये हरे वृक्षों का काटना भी पाप है। याज्ञवल्क्य स्मृति १. १५६, बृहन्नारदीयपुराण २२. १२. १६ में पशुबलि और मांसाहार को लोकविरुद्ध होने से त्याज्य ठहराया। मनुस्मृति में यहांतक कहा गया है कि दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत् । सत्यपूतां वदेद्वाचं मनःपूतं समाचरेत् ॥ ६. ४६. अर्थात् चलते समय मार्ग को देखते हुए चले। जल को वस्त्र से छान कर पीवे । सत्यभरी वाणी बोले और पवित्र सद्भावनापूर्वक आचरण करें।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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