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संस्कृति भारत की अहिंसा संस्कृति ।
३१३ ग्रहण करने तथा शत्रुनाश में सहायता देने के लिये आह्वाहन किया गया है। इसके अलावा ऋ. ९. ९६, ६' में ऋषि अर्थात् नारद ऋषि को विप्रों में एक प्रमुख ऋषि कहा गया है। और गोपथब्रामण पूर्व २. ८ में इस ऋषि के सम्बन्ध में कहा गया है कि ऋषि मुनिने ऋषि द्रोण (पर्वत) पर तप किया था। उक्त ब्राह्मण के वचन से मालूम होता है कि उक्त ऋषि (नारद ) एक तपस्वी ऋषि था। पीछे के हिन्दू और जैन पौराणिक साहित्य में जगह २ विभिन्न युगों में बालब्रह्मचारी नारद मुनि का संमाननीय मुनि के रूप में उल्लेख मिलता है। ये अवश्य ही उक्त आख्यान के नारद ऋषि की परम्परा के तपस्वी मुनि होंगे। जैन अनुश्रुति के अनुसार भी भगवान् मुनिसुव्रत त्रेतायुगकालीन रघुवंशी राम के समकालीन हैं और महाभारत युद्धकाल से काफी पहले हुए हैं। उक्त चेदि का आधुनिक नाम चन्देरी है। यह मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में ललितपुर से २२ मील की दूरी पर स्थित है । महाभारत काल में यह शिशुपाल की राजधानी रही है।
इस कथा से पता चलता है कि जब आर्यगण कुछ हिमाचल देश से और कुछ सप्तसिन्धु देश से मध्यप्रदेश की ओर आगे बढ़े तो यहां पर भी उनकी हिंसात्मक प्रवृत्तियों का विरोध उतने ही जोर से हुआ जितना सप्तसिन्धु और हिमाचल प्रदेश में हुआ था । शौरसेनदेश, कृष्ण और इन्द्र की कथा
इस मध्यदेश में बसने के बाद आर्यगण की जो शाखा मथुरा आगरा आदि शौरसेन देश के इलाके में बढ़ी उसे भी यमुना नदी के किनारे बसनेवाले कृष्णवर्ण तुर्वश और यदु. वशी क्षत्रियों के विरोध के कारण हिंसामयी प्रवृत्तियों को तिलांजलि देनी पड़ी । ऋग्वेद ८. ९६. १३-१५ में कहा गया है कि शीघ्रगामी कृष्ण दस हजार सेना के साथ अंशुमती नदी ( यमुना ) के समीप इन्द्र के आक्रमण को रोकने के लिये आया। इन्द्र उस महा शब्द करनेवाले कृष्ण के पास आया और सन्धि करने के विचार से कृष्ण के साथ मित्रता की बातचीत शुरू की। परन्तु अपनी सेना से उसने कहा-अंशुमती नदी के तट के गूढस्थान में विचरण करते हुए उस द्रुतगामी और सूर्य के समान तेजस्वी कृष्ण को मैंने देखा है। वीरो ! मेरी इच्छा है कि तुम उस से युद्ध करो । तदनन्तर उस कृष्णने अपनी सेना अंशुमती की घाटी में एकत्र की और बड़ा पराक्रम दिखाया। चारों ओर से चढ़ाई करनेवाली इस देवेतर सेना से इन्द्रने बृहस्पति की सहायता से कठिनतापूर्वक अपना पीछा छुड़ाया ।
१. ब्रह्मा देवानां पदवीः कवीनामृषिविप्राणां महिषो मृगाणाम् । २. अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रः ।