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संस्कृति विश्व के विचार-प्रांगण में जैन तत्त्वज्ञान की गंभीरता । २५७ साधनोंवाले, भौतिकतामय जीवनवाले और प्रछन्न नास्तिकतावाले ऐसे अभूतपूर्व युग में जैन धर्म और जैन-संस्कृति के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये और इसके पूर्ण विकास के लिये समाज क्या कुछ प्रयत्न करेगा !
अनन्त गुणों के प्रतीक, मङ्गलमूर्चि, परम प्रभु वीतरागदेव से आज शरद-पूणिमा के निर्मल एवं पुनीत शुभ दिवस पर यही पावन प्रार्थना है कि अहिंसा प्रधान आचार द्वारा
और स्याद्वादप्रधान विचारों द्वारा मानव-जाति में नैतिकता और सात्विकता का प्रशस्त एवं परिपूर्ण प्रकाश फैले तथा अखण्ड मानवता 'सत्यं-शिवं-मुन्दरम् ' की ओर प्रगुणात्मक प्रगति करे । तथास्तु ।