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श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय गुर्वावली ।
यतीन्द्रप्रवचन- हिन्दी - गुजराती (दो भाग), समाधान प्रदीप - हिन्दी (प्रथम भाग ), सूक्तिरसलता, प्रकरण - चतुष्टय सार्थ, सत्यसमर्थक - प्रश्नोत्तरी और मानवजीवन का उत्थान इत्यादि ६१ ग्रन्थ निर्माण कर आपने साहित्य को समृद्ध बनाया। आपके हस्तदीक्षित शिष्य स्व. श्रीवल्लभविजयजी और श्रीविद्याविजयजी आदि सतरह ( १७ ) हैं ।
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आपके सदुपदेश से कोरटा, जालोर, भांडवा, थराद, मोहनखेड़ा आदि प्राचीनार्वाचीन तीर्थों का पुनरोद्धार हुआ और हो रहा है। यह श्रीमद्ाजेन्द्रसूरि स्वर्गवासार्धशताब्दी महोत्सव भी आपके विमलोपदेश से समायोजित किया गया है । श्रीमोहनखेड़ा ( म. भा. ) में आपके ही उपदेश से 'श्री आदिनाथराजेन्द्र गुरुकुल' अभी संस्थापित हुवा है। इस समय आप ७४ वर्ष की अवस्था के होते हुए भी अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करते हुए जैन समाज के उत्थानार्थ प्रयत्नशील हैं | वास्तव में हमारी समाज आप जैसे महान् समयज्ञ आचार्य को अपना अधिराज पा कर पुण्यशाली है । अन्त में गुरुदेव के चरणकमलों में वन्दन करता हुआ प्रार्थी हूँ कि यह वीरवाटिका हर प्रकार से संसार का उपकार करती रहे ।।
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