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________________ गुरुदेव-साहित्य-परिचय व्याख्यानवाचस्पति आचार्यदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश शिष्य मुनि जयप्रभविजय प्रत्येक जाति, समाज और राष्ट्र के उत्थान में जितनी महत्वपूर्ण देन साहित्य की होती है, उतनी किसी दूसरी वस्तु, कला एवं पदार्थ की नहीं । पूर्वाचार्य श्रुतधर महर्षियोंने इस बात को लक्ष्य में रख कर निजात्म कल्याणकारी साधना के साथ जनोपकार की भावना रखते हुये सत्साहित्यका निर्माण कर हमें उपकृत किया है । वह साहित्य आज सूत्र-शास्त्रप्रकरणादि के रूप में प्राप्त है, जो युग-युग के बाद भी हमें पतितपावन संदेश सुना कर पवित्र बना रहा है। जिस प्रकार पूर्वकाल को अनेकानेक महामुनि, महातपस्वी, समर्थ विद्वान, त्यागी महर्षियोंने अपने उज्वल कार्यों से कीर्तिसम्पन्न बनाया है, उसी प्रकार विगत विक्रमीय बीसवीं शताब्दी को भी अनेक युगप्रभावक जैन-जनेतराचार्योंने भी अपने सत्कार्यों से चिरस्मरणीय बनाया है। उन युगवीर समर्थ श्रमणाचार्यों में परमपूज्य योगीराज गुरुदेव प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का स्थान भी गौरवयुक्त है। जिस काल एवं समय में गुरुदेवने यतिदीक्षा ग्रहण की थी, उस समय त्यागी वर्ग में शैथिल्य का प्रभाव अत्यधिक जम रहा था । जिसके कारण श्रमण और श्रमणोपासक दोनों एक दूसरे से घने दूर हो रहे थे । फलस्वरूप समाज का वातावरण कलुषित हो रहा था । यह वातावरण गुरुदेव के लिये कदापि सह्य नहीं था । गुरुदेवने अपनी सतत साधना और विद्वता से समाज में क्रान्ति उत्पन्न की और हासोन्मुखी तत्वों का उन्मूलन कर समाज को सुदृढ़ बनाया । अर्थात् उसे सुव्यव. स्थित किया। साथ ही पूर्वाचार्य-समाचरित साहित्य-निर्माण कार्य को भी अपनी यशस्वी पावन लेखनी से यश एवं गौरवयुक्त किया। वह साहित्य प्राकृत, संस्कृत हिंदी, और गूर्जर आदि भाषाओं को विभूषित कर रहा है। आपका साहित्य प्रभावशाली व सप्रमाण है और रोचक विधि से परिमंडित है। आप जैसे भारत और भारतेतर देशों के विद्वन्मंडल. मूर्धन्य के निर्मित साहित्य की समालोचना करनेका कार्य तो महानुद्भट विद्वान् का है-नहीं कि मेरे जैसे बालक का। परन्तु फिर भी ‘शुभे यतनीयम्' न्याय से समस्त विद्वानों को गुरुदेव के साहित्य का नाम, विषय, भाषा और प्रमाणदृष्टि से ही कुछ इस लेख में दिखलाना मेरा ध्येय है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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