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________________ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ बन सकता है । गुरुदेवने अपने योगबल के द्वारा कई असंभव और बड़े-बड़े भारी कार्यों को भी सहज में कर दिखाएँ हैं। १-मालवा-प्रान्त में बड़नगर और खाचरौद के बीच में चिरोला नामक एक गाँव आया हुआ है । कई वर्षों से चिरोलावाले ओसवालों का मालवा-प्रान्तीय ओसवाल आदि सभी समाजोंने बहिष्कार कर दिया था । इसका मुख्य कारण यह था कि पिता और माताने अपनी एक ही कन्या की शादी करने का निर्णय, अलग २ रतलाम और सीतामऊ वाले दो अलग २ वरों के साथ किया । ठीक समय पर दोनों जगह से वर बड़ी धूमधाम के साथ अपनी-अपनी बरात सजा कर लग्न के लिये आये। इस तरह से एक ही कन्या के लिये दो वर और उनकी बरातों को आई हुई देखकर चिरोला और उसके समीपवर्ती पंचोंने यहो निश्चय किया कि-माताने लड़की के विवाह का जो निश्चय सीतामऊवाले के साथ किया है, वही हो और अन्त में वही हो कर रहा । इस निर्णय से रतलामवालों को अपना बड़ा भारी अपमान जान पड़ा और उन्होंने मालवा-प्रान्त की समाज को एकत्रित कर चिरोलावालों का सम्पूर्ण बहिष्कार किया। यह मामला इतनी उग्रता पर बढ़ने लगा कि चिरोलावाले और उनके कुछ पक्षीय लोग सभी तरह से हताश होने लगे । विवाहादि संबन्ध तो दूर रहे परन्तु इनके हाथ का पानी पीना भी बड़ा भारी अपराध माना जाने लगा। सारे प्रान्त में अपने इस तिरस्कार-जातिबाहर से अन्त में चिरोलावालों को सभी तरह से बड़ी भारी परेशानी होने लगी। अपने अपराध की माफी और दण्ड आदि देकर जातीय एवं पारस्परिक संबन्ध के स्थापनार्थ उन्होंने कई बार समाज से प्रार्थना की परन्तु उसका परिणाम शून्य ही आया और कोई भी इन को अपनाने के लिये किसी तरह से भी तैयार नहीं हुये। इस विषय में बड़े २ गृहस्थ, राजकीय कर्मचारी, संत-साधु आदिने अपना-अपना पूरा परिश्रम किया, परन्तु फिर भी इस कार्य में उन्हें कुछ भी सफलता नहीं मिली। इस तरह से यह विषय लगभग २५० वर्ष से चल रहा था और किसी तरह से भी कोई आशा दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी। पूज्य स्व० गुरुदेव समर्थ प्रभावक योगीराज प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज उस समय जैन शासन में एक महान् जैनाचार्य थे। खाचरौद श्रीसंघ के अत्याग्रह से अपने शिष्य परिवार के साथ आप यहाँ चातुर्मास विराजमान थे। उस समय आपका अलौकिक प्रभाव और तप-त्याग एवं अद्भुत योगशक्ति सर्वत्र विश्रुत हो चुकी थी। चिरोलावालों ने गुरुदेव की सेवा में उपस्थित होकर व्याख्यान के बाद विनम्र दुःख भरी प्रार्थना की कि हे गुरुदेव ! आप जैसे समर्थ धर्माचार्य एवं योगसिद्ध आदेय वचनी के विराजमान होते हुए भी यदि हमारा पुनरुद्धार नहीं हुआ तो फिर हमारा भविष्य किसी तरह से सुधरने वाला नहीं है। आपही एक हमारा उद्धार करने में समर्थ हैं। आपके आदेय और योगसिद्ध वचनों को कोई भी
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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