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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ भक्तोंने विचार किया कि अब क्या किया जाय !, गुरुदेव अपने वचन पर दृढ हैं। गुरुदेवने अपनी साधना प्रारंभ कर ही दी और कुछ दिन उसी पहाड़ी में रहे । भक्तों से रहा न गया। उन्होंने कुछ राजपूतों को गुप्त रूप से रक्षार्थ भेजे, वे रात्रि में वृक्ष के ऊपर जाकर बैठ गये । उन्होंने रात्रि के समय जो कुछ देखा वह वृत्तान्त प्रातःकाल जालोर जाकर कह सुनाया। कहा कि-गुरुदेव सायंकाल के समय ध्यान करते थे, रात्रि में शेर आया और उन से कुछ दूर दोनों पैर लंबे कर के कुछ समय बैठ कर चला गया। इस कथन से भक्तों के हृदय गद्गद् हो गये और अन्य लोगों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ।
उपर्युक्त चमत्कारी संस्मरणों में जो बातें लिखी गई हैं वे एक मात्र गुरुदेव के ज्ञानबल, तपबल, वचनसिद्धि एवं उनके ज्योतिषज्ञान की परिचायक हैं, नहीं कि किसी की निन्दा लिखने की तुच्छ भावनाओं से प्रेरित होकर दी गई हैं। सच तो यह है कि गुरुदेव जैसे उद्भट विद्वान् हो गये हैं, वैसे ही वे श्री महान् तपस्वी, पूर्ण आध्यात्मिक और ज्योतिष के ज्ञाता थे।
आपने २५-२६ छोटी बड़ी प्रतिष्ठाएँ करवाई और २५०० के लगभग नवीन जिनबिम्बों की अञ्जनशलाकाएँ की थीं; परन्तु स्मरण नहीं और नहीं सुना ही गया कि आपका कोई मुहूर्त विफल हुआ हो अथवा किसी प्रकार की अंत में हानि रही हो । शमित्यलम् ।
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