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395 प्राचीन बिहार में जैन धर्म-कलावशेषीय विश्लेषण के जन्म से संबंधित इन अनेक परम्पराओं में से कौन सत्य है, यह अभी निर्णायक रूप से कहना सहज नहीं है। यद्यपि इनसे स्पष्ट है कि बिहार में जैन धर्म अत्यन्त प्रतिष्ठित रहा है और कम से कम पंद्रहवीं शती ई. तक इसकी व्यापकता के निरन्तर पुरातात्विक प्रमाण भी उपलब्ध हैं।
संदर्भ ग्रन्य १. एस. बी. देव, एक्सपैन्शन ऑफ जैनिज्म, ए. घोष (संपा.) जैन आर्ट एन्ड आर्किटेक्चर, भाग १, भारतीय ज्ञानपीठ, १६७४, पृ. २४॥ २. आर. सी. मजूमदार (संपादक), दि एज ऑफ इंपीरियल यूनिटी, पृ. २६/ ३. नीलकंठ शास्त्री (संपादक), दि एज ऑफ दि नन्दाज एंड मौर्याज, प्र. ३३६-४०। ४. वही, पृ. ३४०। १. वसुनन्दि, प्रतिष्ठासंग्रह, ३/३-४॥ ६. नीलकंठ शास्त्री, पूर्वोक्त, पृ. ४२७-२८/ ७. के. पी. जायसवाल, जैन इमेजेज ऑफ दि मौर्यन पीरियड, जर्नल ऑफ बिहार एन्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, भाग २२. पृ. १३०-३२॥ ८. आर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया-एनुअल रिपोर्ट १९२१-२६, पृ. १२१-२६/ इस मंदिर में प्रारंभिक गुप्तकाल से आठवीं शती ई. तक की मूर्तियां रखी गयी थीं, ए. घोष, पूर्वोक्त, पृ. १६४, पाद टिप्पणी ३। ६ ए. घोष. पूर्वोद्धृत, पृ. १२३। १०. एम. एच. कुरैशी तथा ए. घोष, राजगिर, दिल्ली, १६५६, पृ. २४/ ११. ए. घोष, पूर्वोद्धृत, पृ. १२३॥ १२. नीलकंठ पुरूषोत्तम जोशी, प्राचीन भारतीय मूर्तिविज्ञान, पटना, २०००, पृ. २१३-१४॥ १३. ए. घोष, पूर्वाद्धत, पृ. १२४। १४. आर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया-एनुअल रिपोर्ट १६01-0६ प्र. तथा बी. पी. सिन्हा, डायरेक्ट्री ऑफ बिहार आर्कोलोजी, पटना, २०००, पृ. ११८/ १५. जर्नल ऑफ बिहार रिसर्च सोसायटी, भाग २६ पृ. ४१०-१२। १६. बी. पी. सिन्हा, पूर्वाद्धत, पृ. ११८-१६/ १७. एस. बील, रिकार्डस ऑफ दि वेस्टर्न वर्ल्ड, लन्दन, भाग २. १६०६, पृ. १५८ / १६. ए. घोष, पूर्वाद्धृत, पृ. ७१ व १२५/ १६. वही, पृ. ७१। २०. नीलकंठ पुरुषोत्तम जोशी, पूर्वाद्धत, प्र. २१६ / २१. आर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया-एनुअल रिपोर्ट १९२५-२६, पृ. १२६ तथा एम. एच. कुरैशी तथा ए. घोष, पूर्वोद्धत, पृ. १८/ २२. ए. घोष, पूर्वाद्धृत, भाग १, पृ. १६५/ २३. वही। २४. डी. आर. पाटिल, दि एन्टीक्वैरियन रिमेन्स इन बिहार, पटना, १६६२. पृ. ३४-१। २५. भास्करनाथ मिश्र, नालन्दा, दिल्ली, १६६८ पृ. १७३-७५ एवं २६७। २६. डी. आर. पाटिल, पूर्वाद्धृत, पृ. २७१-७३/ २७. वही, पृ. ७५-७६/ २८. वही। २६. वही, पृ. २१५-१७। ३०. बी. पी. सिन्हा, पूर्वाद्धृत, पृ. २६५-६६ / ३१. वही, पृ. २६४-६६/ ३२. श्यामानन्द प्रसाद ने जमुई और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों के पुरातत्व और जनश्रुतियों पर विशद प्रकाश डाला है, द्रष्टव्य उनका ग्रन्थ 'जमुई का इतिहास एवं पुरातत्व। ३३. डी. आर. पाटिल, पूर्वोद्धृत, पृ. २२७। ३४. बी. पी. सिन्हा, पूर्वाद्धृत, पृ. २६४/
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