________________
मथुरा की एक महत्वपूर्ण पार्श्वनाथ प्रतिमा
शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी
मथुरा से प्राप्त एवं वर्तमान में राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे. १००, माप १.४० x ६० सेमी) में संग्रहीत तीर्थकर पार्श्वनाथ एक प्रतिमा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसमें तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को खड्गासन मुद्रा में मस्तक पर सात सर्पफणों के छत्र के साथ रूपायित किया गया है। पार्श्वनाथ के दोनों ओर सर्प की कुण्डलिनी भी स्पष्ट है। जिन के बॉयी ओर यक्षी पद्मावती हाथ में छत्र का दण्ड भाग पकड़े हुए है और दॉयी ओर यक्ष धरणेन्द्र सुशोमित हैं। जिन की दोनों टांगों (पैर) के निचले हिस्से अनुपलब्ध हैं। पार्श्व का मुख और हाथों के निचले भाग भी खण्डित है। सप्त फणों के ऊपर चक्र का अभिलेखन है। जिन विवस्त्र हैं (चित्र १८.) भगवान पार्श्वनाथ के साथ यद्यपि उनके घोर शत्रु कमठ का अभाव है। एक बलुए पत्थर पर निर्मित है। यह अंकन लगभग तीसरी सदी का है। इसके सम्बन्ध में यू. पी. शाह का यह मत पूर्ण सत्य ज्ञात होता है कि यह अपनी तरह का सर्वप्राचीन अंकन है, बाद में आठवीं और बारहवीं शताब्दी ई. में कम्मठ भगवान पार्श्वनाथ पर पत्थर डालते हुए दर्शाये गये हैं जो अहिच्छत्रा, एलोरा आदि स्थलों पर स्थित प्रतिमाओं पर सुस्पष्ट है लेकिन यह मथुरा कला का सर्वप्राचीन अंकन सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही राजकीय संग्रहालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) की अक्षय निधि है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org