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Sumati-Jñāna आत्म परिमार्जन के एक ओर उच्च सोपान पर बढ़ती है। इस लेश्या के बारे में आचार्यों का मत है कि
शोकाकुलः सदा कष्टः परनिन्दा, आत्म प्रशसकः।
संग्रामे प्रार्थते मृत्यु कापोतो।। अर्थात् इस लेश्या के लक्षण हैं सदा शोक में रत, सदा कष्ट की अनुभूति, आनन्द, उत्साह व हंसी-खुशी का अभाव, परपीड़ा की बजाय स्वपीड़ा में रूचि व संतोष, परनिंदा में आनन्द, आत्मप्रशंसक आदि। इस लेश्या का रस कसैला होता
४.पीत लेश्या इस लेश्या को शुभ व पुण्य को आमंत्रित करने वाली कहकर इसके लक्षण इस प्रकार कहे गये हैं
प्रबुद्धः करूणा युक्ताः कार्य विचारकः।
लामा लामं सदा प्रीतः पीत लेश्या युतो नरः ।। अर्थात् प्रबुद्ध, करूणा से युक्त, विवेकपूर्ण कार्य, लाभ-हानि के प्रति बेपरवाह, समत्व भाव से भरा, सरल सदा और सबके लिए प्रेममय, निष्कपट निष्कलुप। इसीलिए इस लेश्या को शुभ श्रेणी में रखते हुए तेजो लेश्या भी कहा गया है। इस लेश्या का रंग लाल बताया गया है। जिस प्रकार अग्नि जब प्रज्जवलित होती है तब उसका रंग लाल होता है और वह सभी दोषों व विकारों को जलाकर शुद्धि प्रदान करती है, उसी प्रकार यह लेश्या अपने प्रभाव से एक नवीन उत्तेजना प्रदान करती है, नवीन उत्साह का संचार करती है। क्या योग्य है क्या नहीं, इसका मान कराती हुई यह लेश्या निरन्तर लाल से पील और पीले श्वेत की ओर ले जाती है। प्रेम, करूणा, स्नेह पूर्ण विवेक के साथ हृदय की शुद्धि कर द्वेष को तिरोहित कर शुभता की ओर ले जाती है। इस लेश्या का रस मधुर (आम आदि से अनंतगुणा) बताया गया है। ५. पद्म लेश्या इस लेश्या का रंग पीला होता है। यह परम शांति का, शुभ का, हर्ष का प्रतीक है। तेजो लेश्या के उदय होने से धर्म के क्षेत्र में पदार्पण होता है, चूकिं उसके बाद होने पर इसे धर्म लेश्या भी कहा गया है। यह संसार की क्षणभंगुरता की अनुभूति का मान कराती है, भोगों से विरक्ति व त्याग का शुभारम होता है। इस लेश्या के लक्षण हैं
दयाशीला सदात्यागी, देवतार्चन तत्परः।
शुचि मूर्ति सदानन्दाः पदम लेश्या युतो नरः।। अर्थात् सदा दया भाव से युक्त, क्रोध, मान, अहंकार से रहित, परम त्यागी, परमात्मा के प्रति आस्थावान, सदा आनन्दमय रहने वाला। इस लेश्या का रस मधुर (वारूणी से भी अनंतगुणा) बताया गया है। ६. शुक्ल लेश्या इस लेश्या के लक्षण हैं किसी के प्रति बुरा भाव नहीं रखना, सदा सर्वत्र समत्व के भाव, अच्छा-बुरा, मान-अपमान, आनन्द-क्रोध सबसे परे। इसमें आत्मा स्व भाव में, निजत्व में, आत्मस्वरूप में लौटकर स्थिर हो जाती है। इस लेश्या का रंग शुभ्र, सफेद बताया गया है तथा इसका रस मधुर (खजूर, किशमिश, मिश्री से भी अनंतगुणा) माना गया है। यही लेश्या आत्मा को मुक्ति के द्वार तक ले जाने वाली है। ___ इस प्रकार हम रंग आधारित मनोभावों के विश्लेषण से स्थूल भावों को तो समझ ही सकते हैं और उनमें उलझे, लिपटे बिना आत्मा का शुद्धिकरण करने का निरन्तर प्रयास कर आध्यात्मिक उन्नति के उच्चतम बिन्दु तक पहुँच सकते हैं। भगवान महावीर ने भी कहा है कि कौन सा प्राणी किस लेश्या में भ्रमण कर रहा है, यह उसके आचरण व रंग
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